विज्ञापन मामले में भाजपा को सुप्रीम कोर्ट से निराशा, अदालत ने याचिका पर सुनवाई से किया इनकार

कलकत्ता हाईकोर्ट ने 20 मई को भाजपा को चार जून तक आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले विज्ञापनों के प्रकाशन से रोकने का आदेश दिया है। लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चार जून को समाप्त हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी भाजपा को इस मामले में राहत देने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली भाजपा की याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया।

न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया, विज्ञापन अपमानजनक हैं। भाजपा के वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने मामले को वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया।

भाजपा को पहले कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ से झटका मिला था, जिसने भाजपा को चुनाव प्रक्रिया के दौरान आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले विज्ञापनों के प्रकाशन से रोक दिया था। इस आदेश के खिलाफ भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

भाजपा ने दावा किया कि एकल पीठ ने उसे सुने बिना आदेश जारी किया था और चुनाव प्रक्रिया के दौरान विवादों के समाधान के लिए निर्वाचन आयोग को उपयुक्त प्राधिकरण बताया था। टीएमसी ने अपनी याचिका में भाजपा पर असत्यापित आरोपों वाले विज्ञापन प्रकाशित करने का आरोप लगाया था, जिसे अदालत ने एमसीसी का उल्लंघन मानते हुए भाजपा को विज्ञापन प्रकाशित करने से रोक दिया।

अदालत ने निर्वाचन आयोग की धीमी कार्रवाई पर भी नाराजगी जताई और टीएमसी के वकील ने बताया कि भाजपा ने कुछ समाचार पत्रों में टीएमसी को निशाना बनाते हुए विज्ञापन प्रकाशित करवाए थे, जो एमसीसी और निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हैं।

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