बिहार चुनाव में गरमाया वक्फ एक्ट: समाजवाद से सीधा नमाजवाद तक?
बिहार की हवा इन दिनों कुछ ज़्यादा ही सियासी हो गई है। चुनाव नज़दीक हैं, और नेताओं की ज़ुबानें तलवार की तरह चल रही हैं।
तेजस्वी यादव ने वक्फ एक्ट को “कूड़ेदान में फेंकने” की बात क्या कह दी, बीजेपी के सुधांशु त्रिवेदी को मौका मिल गया – बोले,
“अब समाजवाद नहीं, नमाजवाद चल रहा है। संविधान? वो तो इनकी जुबान पर बस चुनाव तक होता है।”
त्रिवेदी ने याद दिलाया कि यही गांधी मैदान था जहाँ लोगों ने कभी संविधान की रक्षा के लिए जान दांव पर लगाई थी, और अब वहीं से उसी संविधान को “फेंकने” की अपील हो रही है।
राजनीति या रद्दी का खेल?
वक्फ एक्ट, जो संसद से पास हुआ और कई हाईकोर्ट से वैध भी ठहरा – उसे यूं सिरे से नकारना सिर्फ एक बात कहता है:
वोटबैंक के लिए अब क़ानून और लोकतंत्र दोनों ही बोझ लगते हैं।
निष्कर्ष:
बिहार चुनाव की पटकथा लिखी जा रही है – धर्म के इमोशनल इंक से, और मुद्दों की स्याही सुख चुकी है।
संविधान, वक्फ, समाजवाद – सब अब सिर्फ चुनावी डायलॉग हैं।
बाकी, जनता तय करेगी कि कूड़ेदान में कानून जाए या ऐसे बयानों की राजनीति।