“Corporate की भीड़ में खोया एक चेहरा”

“Corporate की चकाचौंध में खोते सपने: एक कर्मचारी की ख़ामोश पुकार”

प्रारंभिक स्थिति:
कभी कर्मचारी कहलाने वाला यह प्राणी अपने पहले दिन चमचमाते लैपटॉप और “welcome kit” के साथ दफ़्तर में आया था। तब आंखों में सपना था – “आईडिया लाऊँगा, बदलाव करूंगा।”

तीसरी मीटिंग तक उसे समझ आ गया – जो बोलेगा, वही फंसेगा।


Corporate का व्याकरण:
कर्मचारी तीन प्रकार के होते हैं:

अग्निवीर: “इस ऑफिस को आग लगा दूं” – जो fire extinguisher में भी पेट्रोल ढूंढते हैं।

सेवाभावी संत: “कंपनी का विकास ही मेरा विकास है” – इनके मेल में ‘Thanks & Regards’ में भी company values टपकती हैं।

समर्पित समर्पणशील: “Timesheet मेरा कर्म है” – जो OTP से पहले भी SAP खोलते हैं।


🏢 जब शुरुआत नई थी…

पहली जॉब मिली थी। घर में खुशी का माहौल था।
पापा ने माथा चूमा, माँ ने पूजा की थाली सजाई।
तब सोचा था – अब मैं कुछ बड़ा करूंगा, टीम मीटिंग में बढ़िया आइडिया दूंगा, ऑफिस को कुछ दूंगा।

मगर जल्द ही एहसास हुआ –

“जो बोलेगा, वही फ़ंसेगा।”


💻 Corporate का सच

आप जब कंपनी जॉइन करते हैं, आप कहते हैं –
“कंपनी की growth में मेरी growth है।”
मगर धीरे-धीरे समझ आता है –
“मेरी सारी energy तो company की rent भरने में लग रही है।”


🩺 Consulting – जॉब नहीं, रोज़ का इम्तिहान

Big 4 नाम है – बड़ी कंपनी, बड़ी ब्रांड वैल्यू।
मगर अंदर से?
वो कर्मचारी भी बड़ा बनता है, जिसे तीन हार्ट अटैक तक की मेडिकल पॉलिसी दी जाती है।

प्रेशर झेल सको तो प्रमोशन मिलेगा। वरना ख़ामोशी से घर जाओ।”


🎂 Farewell cake, 25 रुपये और एक अजनबी की विदाई

पहले ही दिन किसी Indraneel के फेयरवेल के लिए पैसे मांगे गए।
मैं उस चेहरे को नहीं जानता था, पर यह एहसास हुआ –

इस सिस्टम में इंसानियत भी एक टारगेट की तरह मांगी जाती है।


🫥 Flat hierarchy, hollow reality

आप सोचते हैं – “Open culture है, सब बराबर हैं…”

फिर एक दिन आपका बॉस आपको डांटते हुए कहता है –

“Kaam theek se nahi karoge toh kass ke *** maar dunga…”

और आप अंदर से टूट जाते हैं, क्योंकि अब आप जानते हैं –
“इंसान होने से पहले, आपको revenue लाना होता है।”


🧾 Excel – हर सपने का आख़िरी पड़ाव

Data scientist हो या Business Analyst,
काम वही होता है –
Sheet खोलो, pivot लगाओ, और deadline से पहले PPT भेजो।

कभी-कभी सोचता हूँ –

“कितनी बार खुद को दबाया, सिर्फ़ एक deadline की खातिर…”



🌿 और अब मैं पूछता हूँ…

“क्या एक नौकरी इतनी बड़ी हो सकती है, कि इंसान छोटा हो जाए?”
“क्या target इतना ज़रूरी है, कि रिश्ते, सेहत और नींद सब secondary हो जाए?”


✍️ और अंत में…

अगर आप भी किसी कॉर्पोरेट ऑफिस में काम करते हैं,
तो कभी लंच ब्रेक में अपने दिल से भी बात करिए।

पूछिए –
“क्या मैं खुश हूँ?”
क्योंकि कभी-कभी,
Promotion से ज़्यादा ज़रूरी होती है – शांति।