पिछले 10 वर्षों से चीन लगातार कोशिश कर रहा था कि शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) के तहत एक “डेवलपमेंट बैंक” की स्थापना की जाए। आखिरकार, 2025 की तियानजिन SCO समिट में इसे आधिकारिक मंजूरी मिल गई है।
यह कदम केवल आर्थिक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक संकेतों से भी भरा हुआ है। क्या यह बैंक अमेरिका-प्रमुख वर्ल्ड बैंक और IMF का विकल्प बन सकता है? या फिर यह चीन की एक और “सॉफ्ट डिप्लोमेसी” चाल है?
1. क्या है SCO डेवलपमेंट बैंक?
यह प्रस्तावित बैंक, SCO के सदस्य देशों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर, ट्रेड, एनर्जी और सोशल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स को फाइनेंस करेगा।
✳️ मुख्य उद्देश्य:
- क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना
- डॉलर पर निर्भरता को कम करना
- चीन की बहुपक्षीय नेतृत्व वाली संस्थाएं बढ़ाना
यह बैंक कुछ हद तक AIIB (Asian Infrastructure Investment Bank) और NDB (New Development Bank – BRICS) से प्रेरित है, लेकिन यह विशेष रूप से SCO क्षेत्र तक सीमित रहेगा।
2. 10 वर्षों की रणनीति – आखिर मंजूरी क्यों अब?
चीन 2015 से इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा रहा था। लेकिन भूराजनैतिक तनाव, भारत-पाक संबंध, और गवर्नेंस मॉडल को लेकर असहमति बनी रही।
अब जब रूस, चीन और ईरान जैसे देश अमेरिका से अधिक टकराव में हैं, तो “वैकल्पिक संस्थाएं” बनाने की कोशिश तेज हो चुकी है।
3. फ्लेक्सिबल स्ट्रक्चर – भारत के लिए क्या विकल्प?
तियानजिन डिक्लेरेशन के अनुसार:
“Interested member states will participate.”
🔹 यानी SCO के सभी सदस्य इस बैंक के आवश्यक सदस्य नहीं होंगे।
🔹 भारत चाहे तो बाहर रह सकता है या बाद में भी शामिल हो सकता है।
🔹 यह एक फ्लेक्सिबल स्ट्रक्चर होगा, जहां मेंबरशिप वैकल्पिक है।
4. किस तरह का होगा स्ट्रक्चर?
बिंदु | जानकारी |
---|---|
कैपिटल बेस | अब तक तय नहीं, लेकिन NDB ($100B) और AIIB के बराबर या कम रहने की संभावना। |
गवर्नेंस मॉडल | क्या सभी को समान वोटिंग पावर मिलेगा या चीन का वर्चस्व होगा? स्पष्ट नहीं। |
करेंसी | प्रयास यह रहेगा कि नेशनल करेंसीज़ (जैसे युआन, रूपया, रूबल) का प्रयोग बढ़े। |
लोकेशन | चीन लीड करेगा, लेकिन हेडक्वार्टर पर अंतिम फैसला नहीं हुआ। |
5. चुनौतियां और विवाद
🔺 क्या ये वर्ल्ड बैंक/IMF को टक्कर दे सकता है?
- वर्ल्ड बैंक हर साल ~$100B तक लोन देता है।
- IMF की लोनिंग कैपेसिटी ~$1 ट्रिलियन है।
- SCO बैंक की क्षमता फिलहाल सीमित रहेगी।
🔺 तकनीकी विशेषज्ञता और अनुभव की कमी
IMF और वर्ल्ड बैंक के पास दशकों का अनुभव, डेटा, और ग्लोबल वैधता है। एक नए बैंक को यह हासिल करने में वर्षों लग सकते हैं।
🔺 आंतरिक मतभेद (India-China, India-Pakistan)
SCO देशों के बीच राजनीतिक तनाव निर्णय लेने की गति को धीमा कर सकते हैं।
6. भारत का स्टैंड – शामिल हो या नहीं?
भारत AIIB में दूसरा सबसे बड़ा शेयरहोल्डर है और सबसे बड़ा लोन बॉरोअर भी।
तो क्या भारत SCO बैंक में भी हिस्सा लेगा?
संभावनाएं:
✅ अगर चीन का दबदबा नहीं होता और गवर्नेंस संतुलित होती है
✅ यदि ऋण की शर्तें पारदर्शी और व्यावहारिक होती हैं
➡️ तब भारत इसमें दिलचस्पी दिखा सकता है।
चुनौतियां:
❌ चीन के वर्चस्व वाला मॉडल
❌ भारत-पाक विवाद के चलते मतभेद
निष्कर्ष:
SCO डेवलपमेंट बैंक की स्थापना एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय पहल है जो चीन के “विकल्प बनाओ” एजेंडा को आगे बढ़ाती है।
👉 यह बैंक IMF या World Bank की सीधी जगह नहीं ले सकता, लेकिन यह क्षेत्रीय फाइनेंसिंग के लिए एक वैकल्पिक मंच जरूर बन सकता है।
भारत जैसे देशों के लिए यह एक अवसर भी है – लेकिन जोखिमों को समझना जरूरी है।