नेपाल में आई भारी बाढ़ के पीछे के कारण: 170 लोगों की मौत, काठमांडू में तबाही

हाल ही में नेपाल में आई विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलनों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। भारी बारिश की वजह से उत्पन्न हुई इस आपदा ने नेपाल के सेंट्रल और ईस्टर्न हिस्सों में विशेषकर कहर बरपाया है। नेपाल की राजधानी काठमांडू भी बाढ़ और भूस्खलनों से बुरी तरह प्रभावित हुई है। 170 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है और 42 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं। यह प्राकृतिक आपदा नेपाल में लंबे समय से जारी मानसून और क्लाइमेट चेंज के कारण और भी गंभीर हो गई है।

नेपाल में बाढ़ और भूस्खलन: प्रमुख प्रभावित क्षेत्र

नेपाल के सेंट्रल और ईस्टर्न हिस्सों में बाढ़ और भूस्खलन का सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिला है। विशेष रूप से काठमांडू, जो नेपाल की राजधानी है, बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। यहां की प्रमुख नदी बागमती ने खतरनाक स्तर को पार कर लिया, जिससे आसपास के इलाके जलमग्न हो गए।

भूस्खलनों की वजह से कई हाईवे बंद हो गए हैं, जिनमें काठमांडू से जुड़ा त्रिभुवन हाईवे भी शामिल है। इसने राहत कार्यों को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है। नेपाल की आर्मी और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने अब तक 162 लोगों को एयरलिफ्ट किया है और लगभग 4000 लोगों को बचाने में सफलता प्राप्त की है। राहत सामग्री जैसे भोजन, पानी और अन्य आवश्यक सामान भी वितरित किए जा रहे हैं।

54 साल का बारिश का रिकॉर्ड टूटा

नेपाल में बाढ़ का यह संकट अचानक आई मूसलाधार बारिश के कारण और बढ़ गया। काठमांडू में शनिवार को 54 साल का रिकॉर्ड टूटा जब 24 घंटों में 323 मिमी बारिश दर्ज की गई। यह अत्यधिक बारिश, जो जून से शुरू हुई मानसून का हिस्सा है, अक्टूबर के अंत तक जारी रहने की संभावना है। सामान्य तौर पर मानसून का सीजन सितंबर तक समाप्त हो जाता है, लेकिन इस बार यह लंबे समय तक खिंचने की वजह से विनाशकारी प्रभाव डाल रहा है।

मानव निर्मित आपदाओं का योगदान

जहां इस आपदा को प्राकृतिक आपदा माना जा रहा है, वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि मानव निर्मित कारणों ने इस संकट को और भी गंभीर बना दिया है। नेपाल में अनियंत्रित शहरीकरण और नदी किनारे अव्यवस्थित निर्माण कार्यों ने बाढ़ की स्थिति को और बिगाड़ दिया है। काठमांडू जैसे बड़े शहरों में नदी के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करने से जलभराव की समस्या और अधिक बढ़ जाती है। विशेषज्ञ इसे नेचुरल डिजास्टर के साथ-साथ “मैन मेड डिजास्टर” भी मानते हैं।

ग्लेशियर पिघलने का खतरा

नेपाल में दुनिया की 10 सबसे ऊंची चोटियों में से 9 स्थित हैं, जिनमें कई बड़े ग्लेशियर भी हैं। क्लाइमेट चेंज के चलते इन ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का खतरा भी बढ़ गया है, जिससे नदियों का जल स्तर और अधिक बढ़ जाता है। भारी बारिश के साथ ग्लेशियरों का पिघलना बाढ़ की स्थिति को और गंभीर बना देता है।

नेपाल और भारत के बीच सहयोग

नेपाल और भारत के बीच सीधा संपर्क और सहयोग इस संकट की घड़ी में देखने को मिल रहा है। नेपाल की बाढ़ का प्रभाव बिहार तक भी देखने को मिला है। नेपाल की कोसी नदी से अत्यधिक पानी छोड़े जाने के कारण बिहार के कई जिलों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। बिहार सरकार ने 13 जिलों में अलर्ट जारी कर दिया है, क्योंकि कोसी बैराज से छोड़ा गया पानी बिहार में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।

समाधान और भविष्य की चुनौतियाँ

नेपाल में इस आपदा से निपटने के लिए सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की ओर से राहत कार्य तेजी से किए जा रहे हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालिक समाधान के लिए नेपाल को अपने शहरी विकास और जल निकासी प्रणालियों पर अधिक ध्यान देना होगा। बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर योजना और प्रबंधन की जरूरत है।

क्लाइमेट चेंज के चलते नेपाल और भारत जैसे देशों में मानसून की अवधि और तीव्रता में बदलाव देखा जा रहा है, जिसके लिए आने वाले समय में दोनों देशों को मिलकर बेहतर तैयारी करनी होगी।

निष्कर्ष

नेपाल में आई बाढ़ और भूस्खलनों ने पूरे देश को विनाशकारी स्थिति में धकेल दिया है। 170 से अधिक लोगों की मृत्यु और सैकड़ों लोगों के लापता होने की घटनाएं इस आपदा की गंभीरता को दर्शाती हैं। क्लाइमेट चेंज, अनियंत्रित शहरीकरण और ग्लेशियर पिघलने जैसी चुनौतियाँ आने वाले समय में और भी बड़ी हो सकती हैं, जिसके लिए नेपाल और पड़ोसी देशों को मिलकर स्थायी समाधान निकालने की आवश्यकता है।

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