भारत न केवल दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, बल्कि सस्टेनेबल खाद्य उत्पादन और आहार की दृष्टि से भी अग्रणी है। यदि हम शाकाहारियों की संख्या की बात करें, तो विश्व में सबसे अधिक शाकाहारी लोग भारत में ही रहते हैं। अनुमान के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या में से लगभग 25 से 39 प्रतिशत लोग शाकाहारी हैं। लेकिन यह केवल शाकाहारियों तक सीमित नहीं है। भारत में बहुत से मांसाहारी लोग भी भोजन के लिए पौधों पर आधारित आहार जैसे सब्जियाँ और दालें अधिक मात्रा में ग्रहण करते हैं।
सस्टेनेबिलिटी में भारत की भूमिका
भारत के आहार का पैटर्न, जिसमें प्रमुखता से पौधों पर आधारित भोजन शामिल होता है, फूड प्रोडक्शन में ऊर्जा की कम खपत और पर्यावरण के प्रति अधिक सस्टेनेबिलिटी प्रदान करता है। इसी कारण भारत विश्व की शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं (G20) में सबसे सस्टेनेबल खाद्य उपभोग वाले देशों में गिना जाता है। 2024 की लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट द्वारा, जिसे वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) ने प्रकाशित किया है, यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि भारत का खाद्य उपभोग पैटर्न धरती के लिए लाभकारी है। यह रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि यदि विश्व भर के लोग भारतीय आहार शैली को अपनाते हैं, तो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ चल रही तमाम कोशिशों से मिलने वाले परिणाम और अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
भारत का योगदान: पर्यावरण के लिए अच्छा आहार
भारत में हाल के वर्षों में मिलेट्स (मोटे अनाज) पर विशेष जोर दिया गया है। मिलेट्स जलवायु अनुकूल होते हैं और कम पानी व ऊर्जा की आवश्यकता के साथ भी बढ़ते हैं, जिससे उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए आदर्श आहार बनाता है। WWF की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि पूरी दुनिया भारत का आहार पैटर्न अपनाती, तो हमें 2025 तक जलवायु पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों में बहुत बड़ी कमी देखने को मिलती।
भारत की सस्टेनेबल आहार शैली की वैश्विक आवश्यकता
रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह उठाया गया कि यदि पूरी दुनिया भारत जैसा फूड कंजम्पशन मॉडल अपनाती, तो हमें सिर्फ 0.84 पृथ्वियों की आवश्यकता होती, जबकि आज के मौजूदा वैश्विक उपभोग के स्तर पर दो या अधिक पृथ्वियों की जरूरत पड़ेगी। यह तथ्य भारत की सस्टेनेबिलिटी के प्रति जागरूकता और समर्पण को दर्शाता है। भारत का मिलेट-आधारित आहार, जिसकी सिफारिश राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर की जा रही है, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक ब्लूप्रिंट के रूप में उभर रहा है।
अन्य देशों की तुलना
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश सस्टेनेबल खाद्य उपभोग के मामले में सबसे पीछे हैं। इन देशों में भोजन उत्पादन और उपभोग की शैली के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत अधिक है, जो जलवायु परिवर्तन को और अधिक गंभीर बनाता है। WWF की रिपोर्ट बताती है कि यदि 2050 तक यह पैटर्न जारी रहा, तो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 263 प्रतिशत तक बढ़ सकता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य असंभव हो जाएगा।
समाधान और आवश्यक कदम
रिपोर्ट के अनुसार, हमें भोजन उत्पादन की प्रकृति बदलनी होगी। पौधों पर आधारित आहार, जैसे कि दालें, एल्गी, और अन्य पौध-आधारित प्रोटीन, को प्राथमिकता देकर हम न केवल पर्यावरण को बचा सकते हैं बल्कि खाद्य उत्पादन में खर्च होने वाली भूमि और पानी को भी बचा सकते हैं। इसके अलावा, फूड लॉस और वेस्ट को कम करके, और किसानों को पर्यावरण-अनुकूल खेती के लिए प्रोत्साहित करके हम सस्टेनेबल भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत का आहार पैटर्न न केवल स्वास्थ्यवर्धक है बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है। यह दुनिया के लिए एक उदाहरण है कि कैसे पौधों पर आधारित आहार से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में योगदान दिया जा सकता है। WWF की रिपोर्ट इस बात को प्रमुखता से दर्शाती है कि भारत का सस्टेनेबल भोजन मॉडल विश्व के लिए एक ब्लूप्रिंट हो सकता है। अगर पूरी दुनिया भारत के इस मॉडल को अपनाती है, तो हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकते हैं और धरती को एक बेहतर भविष्य दे सकते हैं।
यह समय है कि बाकी दुनिया भी भारत के इस सस्टेनेबल आहार पैटर्न से सीख ले और ग्लोबल फूड सिस्टम को सस्टेनेबिलिटी की दिशा में मोड़े।