परिचय
‘वाघ नख’ एक ऐसा ऐतिहासिक हथियार है जिसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी वीरता और शौर्य के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया था। यह हथियार इस तरह से डिजाइन किया गया था कि इसके एक ही वार से किसी को भी मौत के घाट उतारा जा सकता था। शिवाजी महाराज की वीरता की कहानी दुनिया भर में प्रचलित है और ‘वाघ नख’ का इसमें एक महत्वपूर्ण स्थान है।
‘वाघ नख’ की वापसी
एक लंबे इंतजार के बाद, 17 जुलाई को पुरात्तव विभाग के अधिकारी इस ऐतिहासिक ‘वाघ नख’ को लेकर लंदन से मुंबई एयरपोर्ट पहुंचे। अब इसे महाराष्ट्र के सतारा में ले जाया जाएगा, जहां 19 जुलाई से इसका प्रदर्शन किया जाएगा।
‘वाघ नख’ का महत्व
‘वाघ नख’ एक विशेष प्रकार का हथियार था, जिसे आत्मरक्षा के लिए तैयार किया गया था। यह हथेली में इस तरह फिट होता था कि इसका उपयोग करने वाला इसे आसानी से इस्तेमाल कर सके। इसमें चार नुकीली छड़ें होती थीं, जो एक बाघ के पंजे की तरह दिखती थीं। इसके वार से सामने वाले की मौत तक हो सकती थी, जिससे यह बेहद घातक माना जाता था।
‘वाघ नख’ का इतिहास
18वीं शताब्दी में ‘वाघ नख’ मराठा साम्राज्य की राजधानी सतारा में रखा गया था। 1818 में मराठा पेशवा ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी को उपहार के रूप में दे दिया था। 1824 में जब यह अधिकारी भारत से लंदन लौटा, तो वह इसे अपने साथ ले गया और कुछ वर्षों बाद इसे वहां की एक म्यूजियम में रख दिया गया।
शिवाजी महाराज और ‘वाघ नख’
‘वाघ नख’ छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रमुख हथियारों में से एक था। 1659 में, शिवाजी महाराज ने इसी ‘वाघ नख’ का उपयोग करके बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान का पेट चीरा था। यह घटना तब हुई जब अफजल खान ने शिवाजी को छल से मारने की योजना बनाई थी और उन्हें मिलने के लिए बुलाया था। जब अफजल खान ने शिवाजी पर खंजर से हमला करने की कोशिश की, तो सतर्क शिवाजी महाराज ने ‘वाघ नख’ से उसका पेट एक ही वार में चीर दिया था।
निष्कर्ष
अफजल खान को मौत के घाट उतारने के बाद से ही ‘वाघ नख’ छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता और शौर्य का प्रतीक बन गया है। इस ऐतिहासिक हथियार की वापसी न केवल भारत के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह शिवाजी महाराज की गौरवशाली विरासत को फिर से जीवंत करने का अवसर भी है।