रीटेल इस्लामिक आतंकवाद को लेकर सख्त चेतावनी: S. Jaishankar ने United Nations पर उठाए गंभीर सवाल

नई दिली — 24 अक्टूबर 2025 को राजधानी दिल्ली में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम के दौरान, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने United Nations Security Council (यूएनएससी) के सदस्यों व कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की। यह कार्यक्रम “United Nations की 80वीं वर्षगांठ” के उपलक्ष्य में आयोजित था।

जयशंकर ने कहा कि आज हम यह समझें कि “सब कुछ ठीक नहीं है” — यूएन की निर्णय-प्रक्रिया न तो पूरी तरह सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करती है, न ही वर्तमान वैश्विक आवश्यकताओं का जवाब देती है। उन्होंने बताया कि बहुपक्षवाद के उस आदर्श को जिसने विश्व शांति, सुरक्षा और विकास की नींव रखी थी, आज वह “बहुत बंटा हुआ” पाया जा रहा है।

जयशंकर ने आतंकवाद के खिलाफ यूएन की प्रतिक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब एक यूएनएससी सदस्य खुलकर उस समूह का बचाव करता है जिसने प‌हलगाम में आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली थी, तो मुल्टीलेटरलिज़्म की विश्वसनीयता क्या होगी।

उन्होंने ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के लिए विकास व सामाजिक-आर्थिक प्रगति की चुनौतियों को रेखांकित किया और कहा कि यूएन की भूमिका इसमें कम होती जा रही है।

जयशंकर ने यह भी कहा कि संगठन के “संवाद, निर्णय-प्रक्रिया व क्रियान्वयन” में जाम लगता दिख रहा है।

साथ ही उन्होंने यह भरोसा दिया कि भारत बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्ध है — हालांकि पूर्ण नहीं परंतु सुधार की दिशा में कार्यरत।

प्रेरणा व प्रभाव:

इस तरह की टिप्पणी, विशेष रूप से एक प्रमुख सदस्य देश के विदेश मंत्री द्वारा, इस बात का संकेत देती है कि भारत मात्र आलोचक नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संस्था में सुधारकर्ता के रूप में भी भूमिका लेने को तैयार है। यह वैश्विक मंचों में भारत की सक्रियता और बढ़ती सुरक्षा-विकास चिंताओं की ओर ध्यान देने का संकेत है।

आगे क्या होगा:

भारत यूएन तथा अन्य बहुपक्षीय संस्थाओं में सदस्यता सुधार, प्रक्रिया पारदर्शिता, और बेहतर कार्य-प्रणाली की दिशा में अपनी आवाज़ जुटा सकता है।

इस बयान के बाद, यूएन व भारत-संबंधित अन्य सुरक्षा व विकास मंचों पर चर्चा एवं रणनीति हो सकती है।

देश-विहीन आतंकवाद, ब्लॉक-निर्धारित नीतियाँ तथा विकास खांचों को ध्यान में रखते हुए, भारत अपनी विदेश नीति में पुनर्स्थापन कर सकता है।