मन को भटकने देने से मस्तिष्क को तरोताजा करने में मदद मिल सकती है

प्रेस्टन, सात अगस्त (द कन्वरसेशन) क्या आप दिन-रात अपने नियोक्ता की ओर से निर्धारित लक्ष्य हासिल करने की जद्दोजहद में जुटे रहते हैं? क्या आप देश-दुनिया की हलचल जानने या अपनों के जीवन में घट रही घटनाओं का पता लगाने के लिए घंटों सोशल मीडिया साइटें खंगालते रहते हैं? अगर हां, तो आप अनजाने में तनाव को दावत दे रहे हैं और अपने मस्तिष्क को ‘ब्रेक’ की भीख मांगने के लिए मजबूर कर रहे हैं।

हमारे मस्तिष्क को वास्तव में एकाग्रता से कुछ समय के ‘ब्रेक’ की जरूरत होती है। हम कुछ पल के लिए किसी भी चीज पर ध्यान केंद्रित न करके और अपने मन को भटकने की इजाजत देकर, तनाव के स्तर में कमी ला सकते हैं और अपने बौद्धिक कौशल में इजाफा कर सकते हैं।

यह बात सुनने में तो आसान लगती है, लेकिन इस पर अमल करना बेहद मुश्किल होता है। हालांकि, ‘अटेंशन रिस्टोरेशन थ्योरी’ (आर्ट) के जरिये हम अपने मन को भटकने देने की कला सीख सकते हैं। तंत्रिका विज्ञान भी मस्तिष्क को तरोताजा करने में इस तकनीक की उपयोगिता पर मुहर लगाता है।

‘अटेंशन रिस्टोरेशन थ्योरी’ सबसे पहले 1989 में मनोवैज्ञानिक रेचेल और स्टीफन कपलान ने पेश की थी। उन्होंने दावा किया था कि प्रकृति के साथ समय बिताने से ध्यान शक्ति और एकाग्रता को बहाल करने में मदद मिल सकती है।

रेचेल और स्टीफन ने कहा था कि एकाग्रता दो तरह की होती है : पहली निर्देशित एकाग्रता और दूसरी अनिर्देशित एकाग्रता।

निर्देशित एकाग्रता से मतलब किसी चीज पर जानबूझकर ध्यान केंद्रित करने से है, जैसे कि पढ़ना-लिखना, किसी व्यस्त स्थान से गुजरना या सोशल मीडिया पर पोस्ट करना। इसमें मूल रूप से कोई ऐसी गतिविधि शामिल होती है, जिसमें हमारे मस्तिष्क का ध्यान किसी विशिष्ट कार्य पर केंद्रित होता है।

वहीं, अनिर्देशित एकाग्रता का मतलब यह है कि हम सचेत रूप से किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास नहीं करते, बल्कि बिना प्रयास किए ही चीजें धीरे-धीरे हमारा ध्यान आकर्षित करने लगती हैं। मिसाल के तौर पर चिड़ियों की चहचहाहट या पत्तियों के हिलने की आवाज को ही ले लीजिए। इन मामलों में जोर लगाए बिना ही आपका ध्यान भटककर उक्त चीज पर चला जाता है।

अनिर्देशित एकाग्रता का अनुभव न होने पर हम “ध्यान संबंधी थकान” महसूस करने लगते हैं। इससे मस्तिष्क को किसी चीज पर केंद्रित करना और भी मुश्किल हो सकता है, जबकि ध्यान भटकाने वाली चीजें हमारा ध्यान आसानी से खींचने लगती हैं।

हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कई ऐसी चीजों से गुजरते हैं, जिन्हें हम अक्सर “उबाऊ” करार देते हैं, जैसे कि बस स्टैंड पर बस का इंतजार करना या बिल भरने के लिए सुपरमार्केट की कतार में खड़े होना। लेकिन ये नीरस पल हमारे दिमाग को सुकून महसूस करने का मौका भी देते हैं।

——प्रकृति का साथ फायदेमंद——

-रेचेल और स्टीफन का सिद्धांत 19वीं सदी में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स की ओर से दी गई “स्वैच्छिक ध्यान” की अवधारणा से प्रेरित है। “स्वैच्छिक ध्यान” से मतलब ऐसी एकाग्रता से है, जिसके लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता होती है।

जेम्स की अवधारणा रोमांटिकवाद के व्यापक सांस्कृतिक आंदोलन की पृष्ठभूमि में प्रकाशित की गई, जिसमें व्यक्तिपरकता, कल्पनाशीलता और प्रकृति की सराहना पर जोर दिया गया था। तब से कई अध्ययनों में मस्तिष्क को तरोताजा करने में प्रकृति की भूमिका को रेखांकित किया गया है।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि प्रकृति के साथ समय बिताने से तनाव का स्तर घटाने, एकाग्रता बढ़ाने, मानसिक स्वास्थ्य एवं मूड में सुधार लाने और तर्क शक्ति में वृद्धि करने में मदद मिल सकती है। विभिन्न अध्ययनों में प्रतिभागियों के मस्तिष्क के स्कैन में देखा गया है कि प्रकृति के संपर्क में रहने पर ‘एमिगडाला’ भाग में सक्रियता घट जाती है। ‘एमिगडाला’ मानव मस्तिष्क का वह हिस्सा है, जिसके ज्यादा सक्रिय होने पर व्यक्ति तनाव और बेचैनी महसूस करता है।

——फोन को दूर रखें——

-आप ‘अटेंशन रिस्टोरेशन थ्योरी’ खुद बखुद आजमा सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले अपने घर के आसपास कोई शांत, हरियाली वाली जगह चुनें। इसके बाद वहां जाएं और कुछ पल शांति से बैठें। इस दौरान फोन सहित ध्यान भटकाने वाली अन्य चीजों को कुछ पल के लिए दूर रख दें।

इसके अलावा, जब आपको बोरियत महसूस हो, तो भी अपना फोन उठाने के बजाय खिड़की के बाहर झांकें या कोई ऐसी गतिविधि करें, जिसमें आपके मस्तिष्क को कुछ पल के लिए किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता से छूट मिल सके।