भारतीय पुरातन इतिहास में अनेक राजा-पुरुष हुए हैं, जिनकी कथाएँ केवल शासन की नहीं, आत्मिक नेतृत्व की मिसाल रही हैं। ऐसी ही एक प्रेरक कथा है—राजा चक्ववेण की, जिन्होंने सादा जीवन, उच्च विचार को न केवल अपनाया, बल्कि Ravan (रावण)जैसे अहंकारी राक्षस से भी नीतियुक्त ‘कर’ वसूल कर दिखाया। यह कथा आज के भौतिकवादी युग में एक प्रासंगिक संदेश छोड़ती है।
✦ एक आदर्श जीवन शैली
राजा चक्ववेण की विशेषता थी—संपूर्ण सादगी।
राजपाट होने के बावजूद, खेती कर जीवनयापन करते थे।
प्रजा से आया कर कभी व्यक्तिगत उपयोग में नहीं लाते।
उनकी पत्नी तक अपने वस्त्र खुद बनाती थीं—बिना किसी आभूषण, बिना विलासिता।
यह सब उस समय और भी अद्भुत बन जाता है जब रावण जैसे राजा पूरे संसार पर अपना आतंक स्थापित कर रहे थे।
✦ जब आई विलासिता की आंधी
एक दिन कुछ धनी घरों की स्त्रियाँ राजमहल आईं। उन्होंने रानी के सादे वस्त्रों पर तंज कसे, उसे “दरिद्रता” करार दिया। यह बातें रानी के मन पर असर कर गईं और उन्होंने विलासिता की मांग की।
राजा चक्ववेण ने वचन दिया, लेकिन सिद्धांत नहीं छोड़े।
✦ Ravan (रावण) से ‘कर’ की मांग—नीति का पाठ
राजा ने तय किया कि प्रजा का धन नहीं लेंगे। उन्होंने नीति अनुसार निर्णय लिया कि
“धन उसी से लिया जाए, जो बलवान, धनवान और दुष्ट हो।”
नजर पड़ी रावण पर—बलवान भी, धनवान भी, और नीति से भ्रष्ट भी। वजीर को भेजा गया—साफ संदेश था:
“रावण! दो मन सोना कर के रूप में दो। यह याचना नहीं, आदेश है।”
रावण क्रोधित हो गया। पहले वजीर को कैद किया गया, फिर रावण की सभा में उसे अपमानित किया गया।
✦ जब ‘शील’ ने झुका दिया ‘अहंकार’
राजा चक्ववेण के वजीर ने चतुराई से समुद्र किनारे नकली लंका तैयार की और रावण को एक अलौकिक कौतूहल दिखाया—
जैसे ही नकली लंका के द्वार को “राजा चटवेण की दहाई” देकर हिलाया गया, असली लंका का द्वार भी डोल उठा!
रावण अचंभित रह गया। उसे समझ आ गया कि यह कोई साधारण राजा नहीं, आत्मबल से संपन्न शीलसम्राट है। उसने दो मन सोना दे दिया।
✦ आत्मग्लानि और अंतर्मंथन
जब रानी को यह सब ज्ञात हुआ, तो वह पश्चाताप से भर गईं। उन्होंने कहा—
“मुझे रावण का सोना नहीं, आपके शील का गहना चाहिए।”
राजा ने आदेश दिया—
“यह सोना रावण को लौटा दो। अब हमें इसकी आवश्यकता नहीं।”
✦ आज के भारत के लिए सन्देश
यह केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि आज के भारत के लिए नैतिकता, नीति और आंतरिक शुद्धता का संदेश है।
जहां रावण जैसे अहंकारी सत्ता के प्रतीक हैं, वहीं चटवेण जैसे राजा यह दिखाते हैं कि शील और सिद्धांत ही सच्ची शक्ति हैं।
ऐसे समय में, जब दिखावे और भोग का युग है, यह प्रसंग आह्वान करता है—“शील, संयम और आत्मबल को अपनाएं।”