परिचय:
आज 15 सितंबर को बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी का जन्मदिन है। सुब्रमण्यम स्वामी केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि अर्थशास्त्र, कानून, और विदेश नीति के गहरे जानकार भी हैं। उनका जीवन कई विवादों और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों से भरा रहा है। स्वामी की स्पष्ट सोच और जनहित के प्रति उनकी निष्ठा उन्हें भारतीय राजनीति में एक अलग पहचान दिलाती है।
सुब्रमण्यम स्वामी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
स्वामी का जन्म 15 सितंबर 1939 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक अर्थशास्त्री के रूप में की और कई महत्वपूर्ण आर्थिक और कानूनी मुद्दों पर अपनी राय रखी। 1963 में, उनका पेपर “नोट्स ऑन फ्रैक्टाइल ग्राफ़िकल एनालिसिस” प्रतिष्ठित जर्नल इकोनोमेट्रिका में प्रकाशित हुआ था, जो उनके अकादमिक योगदान का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
राजनीति में सफर और जनहित के मुद्दे:
स्वामी का राजनीतिक करियर भी उतना ही दिलचस्प है जितना उनका अकादमिक जीवन। वे आपातकाल के समय से लेकर राम जन्मभूमि जैसे विवादित मुद्दों पर हमेशा मुखर रहे हैं। सुब्रमण्यम स्वामी को जनहित के मामलों में अपने स्पष्ट और सटीक रुख के लिए जाना जाता है। उन्हें अक्सर अपनी ही पार्टी के खिलाफ भी बोलते देखा गया है, जब बात जनहित और राष्ट्रीय मुद्दों की हो।
कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा का महत्वपूर्ण योगदान:
1981 में, स्वामी ने चीन के नेता डेंग शियाओपिंग के साथ बातचीत करके हिंदू श्रद्धालुओं के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा का मार्ग खुलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका यह योगदान भारतीय संस्कृति और धर्म के लिए एक बड़ा कदम माना जाता है। इस ऐतिहासिक बैठक ने भारत-चीन के रिश्तों में भी एक नया अध्याय जोड़ा।
राजनीतिक और कानूनी सफलताएं:
सुब्रमण्यम स्वामी 1990-91 में योजना आयोग और केंद्रीय वाणिज्य एवं कानून मंत्री भी रहे। वे आपातकाल के बाद चुनाव जीतने वाली उस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिसमें वे विपक्ष में होते हुए भी कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे।
रामसेतु मुद्दे पर ऐतिहासिक जीत:
स्वामी ने रामसेतु परियोजना, जिसमें सेतु को काटने का प्रयास हो रहा था, के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की और सफलतापूर्वक उसे रद्द कराया। यह उनकी कानूनी क्षमता का एक बड़ा उदाहरण है और उन्हें इसके लिए व्यापक सराहना भी मिली।
भारत की विदेश नीति में योगदान:
सुब्रमण्यम स्वामी को 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव द्वारा श्रम मानक और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसके अलावा, उन्होंने भारत की विदेश नीति पर भी कई महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने मात्र 3 महीने में चीनी/मंदारिन भाषा सीख ली थी, जो उनकी अद्वितीय क्षमता को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
सुब्रमण्यम स्वामी की यात्रा न केवल भारतीय राजनीति में बल्कि अर्थशास्त्र और कानून के क्षेत्रों में भी अद्वितीय है। उनके स्पष्ट विचार और जनहित के प्रति समर्पण उन्हें भारतीय राजनीति के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बनाते हैं। चाहे कैलाश मानसरोवर यात्रा हो, रामसेतु का मुद्दा हो, या भारत की विदेश नीति, स्वामी के योगदान आने वाले समय में भी प्रासंगिक बने रहेंगे।