विपरीत परिस्थितियों का दूसरा पहलू : बच्चे मुश्किल हालात से निपटने का हुनर सीखते हैं

(जूलिया येट्स: वेस्टर्न यूनिवर्सिटी और केटी जे शिलिंगटन, विलफ्रिड लॉरियर यूनिवर्सिटी)

वाटरलू, 30 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) विभिन्न अध्ययनों से संकेत मिलता है कि बचपन में उच्च स्तर का तनाव बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य तथा मनोसामाजिक विकास पर बुरा असर डालता है।

हालांकि, यह बात भी कई अध्ययनों से साबित हो चुकी है कि हर तरह की विपरीत परिस्थितियां बच्चों के लिए “बुरी” नहीं होतीं। इस तरह की परिस्थितियों का सामना करते हुए बच्चे मुश्किल हालात से निपटने का हुनर भी सीखते हैं।

प्रतिकूल हालात और एसीई

 बच्चों के सामने आने वाली सामान्य और विशिष्ट प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच अंतर समझना महत्वपूर्ण है। विशिष्ट प्रतिकूल परिस्थितियों को ‘एडवर्स चाइल्डहुड एक्सपीरियंस’ (एसीई) के रूप में जाना जाता है। आमतौर पर बचपन में सामने आने वाली प्रतिकूलताएं उन परिस्थितियों या घटनाओं की एक विस्तृत शृंखला को दर्शाती हैं, जो बच्चे के शारीरिक या मनोवैज्ञानिक विकास के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं।

एसीई में बचपन में सामने आने वाली ऐसी गंभीर प्रतिकूल परिस्थितियां शामिल हैं, जो बच्चों को बेहद दर्दनाक अनुभव देती हैं। इनमें दुर्व्यवहार, उपेक्षा या किसी प्रियजन की मौत प्रमुख है। एसीई से होने वाले विकारों में ‘पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर’, डिप्रेशन, मोटापा और डायबिटीज शामिल हैं।

वहीं, सामान्य प्रतिकूल परिस्थितियों में यह जरूरी नहीं कि बच्चों को बेहद दर्दनाक अनुभव मिले। जो सामान्य प्रतिकूल परिस्थितियां बच्चों की मनोस्थिति पर गंभीर दुष्प्रभाव डाल सकती हैं, उनमें परिवार में आर्थिक तंगी और स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जटिलताएं शामिल हैं।

तनाव झेलने की क्षमता

-मुश्किल हालात से निपटने का हुनर न सिर्फ आंतरिक रूप से तनाव झेलने की क्षमता पर निर्भर करता है, बल्कि इस बात से भी तय होता है कि व्यक्ति को कितना सामाजिक समर्थन एवं वित्तीय आजादी हासिल है तथा उनका परिवार कितना स्थिर है।

बच्चों के मामले में इनमें से ज्यादातर चीजें उनके नियंत्रण से बाहर हैं और मुख्यत: उनके जीवन में मौजूद लोगों, जैसे कि माता-पिता, परिवार, रिश्तेदार, शिक्षक आदि पर निर्भर करती हैं।

जब बच्चों को उनके घर-परिवार, स्कूल में सहयोग और समर्थन मिलता है, तो वे मुश्किल हालातों से घबराते नहीं तथा उनसे निपटने का हुनर सीख जाते हैं, जिससे उनके शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक विकास को भी बढ़ावा मिलता है।

जब बच्चे ऐसे वातावरण में रह रहे होते हैं, जहां उन्हें पग-पग पर लोगों का अपनापन और सहयोग मिलता है, तो वे अक्सर सकारात्मक रहने की कला सीख जाते हैं, जिससे तनाव के खिलाफ उनके शरीर और मस्तिष्क की प्रतिक्रियाएं तेजी से सामान्य होने लगती हैं।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक हालिया अध्ययन में देखा गया कि जब अभिभावक अपने बच्चे की ‘असफलता’ को विकास एवं सुधार के अवसर के तौर पर देखते हैं, तो बच्चों में भी धीरे-धीरे यही मानसिकता विकसित होने लगती है। वहीं, अगर अभिभावक ‘असफलता’ को सफलता की राह में रोड़े के तौर पर लेते हैं, तो बच्चे भी नकारात्मक सोच अख्तियार करने लगते हैं।

इस अध्ययन में ‘असफलता’ से मतलब खेल के किसी मुकाबले में हारने, स्कूल प्रोजेक्ट पर शिक्षक से मनमुताबिक प्रतिक्रिया न मिलने या किसी प्रतियोगिता में पुरस्कार न जीत पाने से था।

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