क्या अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जा रही है ? क्या इसका भारत पर असर होगा ?

दुनिया भर में अमेरिका की मंदी (recession) को लेकर चर्चाएँ तेज हो रही हैं, और यह स्वाभाविक है क्योंकि अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अगर वहाँ मंदी आती है, तो इसका असर केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ेगा, जिसमें भारत भी शामिल है। हालांकि, इस बारे में मतभेद हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल मंदी का कोई ख़तरा नहीं है, जबकि कुछ अन्य इसे संभावित मानते हैं। आइए, इन तर्कों को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि मंदी की ये चर्चा क्यों हो रही है।

अमेरिकी मंदी: चिंताएँ और तर्क

सबसे पहले, हाल के आर्थिक आँकड़ों पर नज़र डालें तो अमेरिकी जॉब मार्केट और स्टॉक मार्केट में उतार-चढ़ाव के संकेत मिलते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर मंदी का ख़तरा इसलिए मंडरा रहा है क्योंकि ब्याज दरें काफी ऊँची हैं। यूएस फेडरल रिज़र्व ने ब्याज दरों को बढ़ाकर 5.25% से 5.5% तक कर दिया है, जो कि पिछले 23 वर्षों में सबसे उच्चतम स्तर पर हैं। इस कारण, व्यवसायों के लिए ऋण लेना महंगा हो गया है, जिससे निवेश में कमी आई है और बेरोज़गारी दर में इज़ाफ़ा हुआ है।

बेरोज़गारी और सैम रूल (Sahm Rule)

मंदी की ओर संकेत करने वाले कुछ प्रमुख संकेतकों में बेरोज़गारी दर प्रमुख है। अमेरिकी बेरोज़गारी दर जून 2024 में 4.1% थी, जो कि जुलाई 2024 में 4.3% तक पहुँच गई। इसके अलावा, एक महत्वपूर्ण आर्थिक नियम, जिसे “सैम रूल” कहा जाता है, भी मंदी की संभावना को इंगित करता है। यह नियम कहता है कि यदि पिछली 12 महीनों में सबसे कम बेरोज़गारी दर वाले तीन महीनों के औसत की तुलना में हाल के तीन महीनों की बेरोज़गारी दर 0.5% से अधिक बढ़ जाती है, तो मंदी आने की संभावना होती है। वर्तमान स्थिति को देखें तो सैम रूल के आधार पर मंदी के आने का संकेत मिल रहा है।

बॉन्ड यील्ड का उल्टा होना

एक अन्य महत्वपूर्ण संकेतक है बॉन्ड यील्ड में उलटाव (inverted yield curve)। सामान्य परिस्थितियों में, लंबी अवधि के बॉन्ड यील्ड (10 साल या उससे अधिक के बॉन्ड) शॉर्ट टर्म बॉन्ड (1-2 साल के बॉन्ड) से अधिक होते हैं। लेकिन, जब शॉर्ट टर्म बॉन्ड यील्ड लंबी अवधि के बॉन्ड यील्ड से अधिक हो जाती है, तो यह मंदी का संकेत माना जाता है। वर्तमान में, अमेरिका में यही स्थिति देखी जा रही है, जिससे विशेषज्ञों को अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी का ख़तरा महसूस हो रहा है।

2020 की मंदी और वर्तमान स्थिति की तुलना

यदि हम अमेरिकी जीडीपी ग्रोथ रेट की बात करें, तो यह 2024 में 3% के आसपास है, जो कि अच्छा संकेत है। 2020 में, COVID-19 महामारी के कारण एक वैश्विक मंदी आई थी, लेकिन वह अल्पकालिक थी। इसके बाद, 2021 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने लगभग 6% की दर से वृद्धि की थी। आज की स्थिति में मंदी की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि हाल के महीनों में बेरोज़गारी दर और अन्य संकेतक कुछ हद तक चिंताजनक हैं। हालाँकि, 2024 में 3% जीडीपी ग्रोथ के साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी में नहीं है, लेकिन बेरोज़गारी और बॉन्ड यील्ड के उलटाव के कारण मंदी की संभावनाएँ बढ़ गई हैं।

क्या मंदी वास्तव में आएगी?

अब सवाल यह है कि क्या अमेरिकी मंदी एक वास्तविकता बनेगी? कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मंदी की आशंका ओवरस्टेटेड है। उनका तर्क है कि पिछले मंदी के समय के विपरीत, इस बार अमेरिकी कॉर्पोरेट्स का मुनाफ़ा अच्छा है और आर्थिक गतिविधियाँ स्थिर हैं। क्रेडिट कार्ड स्पेंडिंग, जो उपभोक्ता विश्वास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है, भी मजबूत बनी हुई है। ऐसे में, यदि केवल बेरोज़गारी दर के आधार पर मंदी की आशंका जताई जा रही है, तो वह पूरी तरह से सही नहीं हो सकती।

फेडरल रिजर्व का कदम

यूएस फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि 2024 के अंत तक ब्याज दरों को 0.5% से 1% तक घटाया जा सकता है। यदि ऐसा होता है, तो ऋण लेना सस्ता हो जाएगा और व्यापार गतिविधियों को बल मिलेगा। इससे बेरोज़गारी दर में गिरावट आ सकती है और मंदी की आशंका कम हो जाएगी।

भारत पर संभावित असर

अब सवाल यह है कि अगर अमेरिका में मंदी आती है, तो इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि अमेरिका में कोई गहरी मंदी आएगी, इसलिए भारत पर इसका सीधा प्रभाव सीमित रहेगा। लेकिन, अगर मंदी गहरी होती है, तो इसका असर भारत के निर्यात पर पड़ सकता है। अमेरिका भारत का बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और अगर वहाँ की मांग घटती है, तो भारतीय निर्यात पर असर पड़ेगा। हालांकि, विश्व बैंक ने हाल ही में भारत की जीडीपी ग्रोथ को 6.6% से बढ़ाकर 7% कर दिया है, जो भारत की मजबूत आर्थिक स्थिति का संकेत है।

स्टॉक मार्केट पर प्रभाव

अमेरिका में मंदी की आशंका के कारण वहाँ के स्टॉक मार्केट में हाल ही में गिरावट देखी गई है। हालांकि, भारतीय स्टॉक मार्केट अभी भी मजबूत है और लगभग अपने ऑल-टाइम हाई पर है। यह दिखाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल मंदी की आशंका से अप्रभावित है।

निष्कर्ष

अमेरिका की मंदी की चर्चा एक जटिल विषय है। जहाँ कुछ संकेतक मंदी की ओर इशारा कर रहे हैं, वहीं अन्य संकेतक अर्थव्यवस्था के बेहतर प्रदर्शन की ओर इशारा करते हैं। बेरोज़गारी दर और बॉन्ड यील्ड के आधार पर मंदी की आशंका व्यक्त की जा रही है, लेकिन अमेरिकी जीडीपी ग्रोथ और कॉर्पोरेट मुनाफ़ा अभी भी मजबूत हैं। ऐसे में, यह कहना मुश्किल है कि अमेरिका में वास्तव में मंदी आएगी या नहीं। भारत के लिए, अमेरिकी मंदी से कुछ हद तक असर हो सकता है, लेकिन फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है।

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