संघ के 100 साल: टिकट और सिक्कों में समेटी ‘सदी भर की विरासत’?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी 100वीं वर्षगांठ पर डाक टिकट और स्मृति सिक्के जारी किए। यह आयोजन विजयादशमी के मौके पर किया गया और इसे संघ की ‘सेवा और संस्कृति’ की यात्रा का प्रतीक बताया गया।

पर असली सवाल यही है—क्या किसी संगठन के सौ साल का मूल्यांकन सचमुच टिकट और सिक्कों से किया जा सकता है? इतिहास को धातु और कागज़ पर छाप देना आसान है, लेकिन समाज पर पड़े असर को नापना कहीं कठिन।

संघ के समर्थक कहते हैं कि संगठन ने शिक्षा, समाजसेवा और राष्ट्र निर्माण में अहम योगदान दिया है। मगर आलोचक याद दिलाते हैं कि संघ की यात्रा विवादों से भी भरी रही है—ध्रुवीकरण की राजनीति से लेकर विचारधारात्मक टकराव तक। ऐसे में टिकट और सिक्कों का जारी होना उनके लिए इतिहास की सफाई-पुस्तक जैसा लगता है, जिसमें केवल उजला हिस्सा दिखाया गया है।

एक और दिलचस्प पहलू यह है कि ऐसे स्मृति-चिह्न आम लोगों की ज़िंदगी में कितना मायने रखते हैं? अधिकांश टिकट एलबमों में दबे रह जाते हैं और सिक्के नोटों की भीड़ में खो जाते हैं। सवाल यही है कि क्या यह प्रतीकात्मकता जनता को वाकई जोड़ती है, या फिर यह केवल संगठन की छवि गढ़ने का एक औपचारिक प्रयास है।

संघ ने सौ साल पूरे किए, यह एक ऐतिहासिक पड़ाव है। लेकिन इस पड़ाव की असली तस्वीर कैसी है—यह बहस शायद टिकट और सिक्कों से कहीं बड़ी है।