“ट्रंप बोले- रुक जाओ! भारत-पाक बोले- जी मालिक!”
पहलगाम हमले के बाद मोदी सरकार गरजी: “आतंकी और उनके आका अब सज़ा की ऐसी बारिश झेलेंगे जो उन्होंने सपने में भी नहीं सोची होगी!” — फिर आई सेना की कार्रवाई: ऑपरेशन सिंदूर।
फिर चार दिन बाद अचानक सब थम गया। और ट्रंप मंच पर टपक पड़े।
ट्रंप बोले, “हमने कहा- टेरर नहीं रुकेगा तो ट्रेड नहीं मिलेगा। और दोनों माने।” कुछ देर बाद पाकिस्तान ने थाली बजा कर धन्यवाद किया। भारत चुप रहा, लेकिन गोली भी नहीं चली।
विपक्ष चौंका: “सीज़फायर की घोषणा अमेरिका ने क्यों की? क्या संसद के पास छुट्टी पर जाने के अलावा कोई काम नहीं बचा?”
कांग्रेस, आप, सीपीआई – सब सरकार से पूछ रहे हैं: “क्या अब भारत की विदेश नीति वॉशिंगटन से चलती है?”
सचिन पायलट बोले: “पहली बार सुना, शांति की घोषणा ट्वीट से होती है।”
अमित शाह खामोश, मोदी जी गंभीर, अमेरिका प्रसन्न।
जयराम रमेश को शिमला समझौते की याद आई, और डी. राजा को अमेरिका की नीयत पर शक हुआ।
ट्रंप बोले: “अब कश्मीर भी सुलझाऊंगा।”
पाकिस्तान बोला: “आइए, आइए… बहुत स्वागत है!”
भारत: “…” (अभी भी माइक नहीं ऑन किया)
और हाँ, सोशल मीडिया पर इंदिरा बनाम मोदी की तस्वीरों की जंग छिड़ गई —एक तरफ रीढ़ की हड्डी, दूसरी तरफ रीट्वीट।
निष्कर्ष:
सीज़फायर हो गया, पर सवाल बाकी हैं:
ये फैसला दिल्ली में हुआ या डीसी में?
गोली बंद किसने कराई – भारत की नीति या अमेरिका की नज़र?
और सबसे बड़ा सवाल – अब अगला ट्वीट किसका आएगा?