🎬 DDLJ: जब छिछोरेपन को बना दिया गया ‘सच्चा प्यार’ का प्रतीक!
मुंबई के मराठा मंदिर में 27 साल तक चली “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” — एक पूरी पीढ़ी को यही सिखा गई कि फेल लड़का, बाप की डांट खाता आशिक ही असली हीरो होता है।
फिल्म में शाहरुख खान — जो पढ़ाई में फिसड्डी, हरकतों में छिछोरा — लड़की के बाप का अपमान करके भी जीत जाता है। और हम तालियां बजाते हैं, popcorn खाते हैं, बच्चों को साथ लेकर कहते हैं – “देखो बेटा, यही है सच्चा प्यार!”
धीरे-धीरे “मंडप से भागने” वाले सीन, “माँ-बाप की न सुनने” वाली स्क्रिप्ट और “छोटे कपड़ों में बड़ी सोच” की फिल्में हमारे संस्कार बन गईं।
अब जब रिश्ते टूट रहे हैं, तो सवाल बच्चों से नहीं, खुद से पूछिए –
“आदर्श हमने क्या दिखाया?”
बॉलीवुड ने जो परोसा, हमने आँख बंद करके निगला —
अब रिश्तों की उल्टी हो रही है, तो दोष किसका है?
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