Aamir Khan की असली कहानी : सेकुलरिज्म की आड़ में देशविरोध

Aamir Khan की असली कहानी : सेकुलरिज्म की आड़ में देशविरोधने दशकों तक “संवेदनशीलता” का स्वेटर पहन रखा था — कभी “तारे ज़मीं पर” से हमें सिखाया कि हर बच्चा ख़ास होता है, तो कभी “3 इडियट्स” से शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए।

बॉलीवुड, विशेष रूप से उसका तथाकथित “बुद्धिजीवी वर्ग”, बीते कुछ दशकों से जिस नैरेटिव को आगे बढ़ा रहा है, वो सिर्फ स्क्रिप्ट तक सीमित नहीं रह गया है—वो एक छुपा हुआ सांस्कृतिक एजेंडा बन चुका है। और इस पूरे मंच के सबसे ‘संवेदनशील’ कलाकार बनकर उभरे हैं – आमिर खान

🎭 संवेदनशील या सुनियोजित?

Aamir Khan की असली कहानी : सेकुलरिज्म की आड़ में देशविरोध को बॉलीवुड का Mr. Perfectionist कहा जाता है, लेकिन क्या उन्होंने सामाजिक सरोकारों को वास्तव में उठाया या केवल छवि निर्माण का खेल खेला?

  • सत्यमेव जयते जैसे शो में उन्होंने महिलाओं, बच्चों, जाति, धर्म पर गहरी बातें कीं—लेकिन हर बार टारगेट कौन था? हिंदू समाज, उसकी परंपराएं, उसके रीति-रिवाज।
  • फिल्मों में संत और पंडित हमेशा ढोंगी, जबकि मौलवी और पादरी समझदार? क्या ये सिर्फ ‘कहानी’ है या एक रणनीति?

🕉️ धार्मिक आस्था पर चुप्पी और चयन

फिल्म PK में शिवजी के भेष में भागते हुए अभिनेता, मंदिरों का मज़ाक, और बाबा संस्कृति पर हमले – यह सब ‘व्यंग्य’ के नाम पर परोसा गया। लेकिन क्या यही व्यंग्य किसी और धर्म पर करने की हिम्मत दिखाई गई?

  • मज़ाक केवल बहुसंख्यकों की आस्था पर, और बाकी पर ‘शांति’?
  • जब देश में हिंसा होती है, तब आमिर कहते हैं—“पत्नी को डर लगता है”। लेकिन जब धर्मग्रंथों की बेअदबी होती है, तो मौन व्रत?

🎥 बॉलीवुड का ‘बुद्धिजीवी गिरोह’

आमिर अकेले नहीं हैं। पूरी इंडस्ट्री में एक खास मानसिकता पनप चुकी है—जहां राष्ट्रवाद ‘जहर’, सनातन परंपराएं ‘पिछड़ापन’, और संस्कृति ‘रिग्रेसिव’ घोषित कर दी गई हैं।

  • तथाकथित कलाकार ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ की आड़ में सिर्फ उन्हीं मुद्दों पर बोलते हैं जिनसे उनकी लाइमलाइट और विदेशी तालियां सुरक्षित रहें।
  • सोशल मीडिया के दौर में ये भ्रम अब तेजी से टूट रहा है। जनता अब सवाल पूछ रही है—कला के नाम पर कितनी बार संस्कृति का मज़ाक उड़ाया जाएगा?

🔍 “सेकुलरिज्म की आड़ में राष्ट्र-विरोध?”

बात केवल Aamir Khan की असली कहानी : सेकुलरिज्म की आड़ में देशविरोधतक सीमित नहीं है। इस पूरी संरचना में कई ऐसे लोग हैं जो कथित राष्ट्रवादियों का चोला ओढ़े हुए हैं, लेकिन मौसमी राष्ट्रवाद के साथ अपने निजी हित साध रहे हैं।

IPSMS जैसे संगठनों में राष्ट्रवादी चेहरों को दिखाकर आम जनता को भ्रमित करने की कोशिश की जाती है।

आरोप है कि कुछ “राष्ट्रवादी मीडिया हाउसों” को भी थोड़ा-बहुत पैसा देकर इस पूरी प्रक्रिया को वैधता प्रदान की जाती है।

बॉलीवुड को अपने ‘ग्लोबल’ एजेंडे से बाहर निकलकर ज़मीनी सच्चाई को समझना होगा। Aamir Khan की असली कहानी : सेकुलरिज्म की आड़ में देशविरोधजैसे कलाकार अगर वाकई संवेदनशील हैं, तो उन्हें केवल “हिंदू प्रतीकों” पर तीर चलाने की बजाय हर प्रकार की कट्टरता के खिलाफ बोलना होगा।

वरना जनता अब सिर्फ ‘परफेक्शन’ नहीं, ईमानदारी भी देखती है।