“सेलेक्टिव जस्टिस: पलड़ा किसका भारी?”

“हकला ” मीम पर 2.5 लाख का जुर्माना, लेकिन संतों पर झूठ फैलाने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं!

देश के “इंसाफ के तराज़ू” का संतुलन आजकल कुछ अजीब हो गया है।
ताज़ा मामला — शाहरुख खान के ‘हकला’ मीम को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वालों पर ₹2.5 लाख का जुर्माना और संभावित कानूनी कार्रवाई की खबरें जोर पकड़ रही हैं।
कहा जा रहा है कि यह कदम “सेलिब्रिटी की छवि बचाने” के लिए है।

📌 दूसरी तरफ की कहानी:
इसी देश में महान संतों और धार्मिक गुरुओं पर सालों तक झूठे आरोप मढ़कर मीडिया ने उन्हें जनता की नज़रों में बदनाम किया।

  • कोर्ट में निर्दोष साबित होने के बाद भी
  • न तो माफ़ी मांगी गई
  • न ही फेक न्यूज़ फैलाने वालों पर कोई जुर्माना लगा
  • और न ही “मानहानि” की भरपाई हुई

⚖️ सवाल यह है:
जब एक मीम के लिए ₹2.5 लाख का दंड तय हो सकता है, तो झूठी ख़बर से किसी की साख, जीवन और सेवा कार्य को नष्ट करने वालों के लिए क्या सज़ा है?
या फिर कानून का तराज़ू सिर्फ वहां भारी होता है, जहां ग्लैमर, विज्ञापन और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का भार हो?

💬 सोशल मीडिया पर चर्चा:
नेटिज़न्स कह रहे हैं —

“सेलिब्रिटी की हंसी उड़ाओ तो जेल, लेकिन संतों के खिलाफ झूठ फैलाओ तो ‘स्वतंत्रता’ का नाम देकर शाबाशी!”

🔍 निष्कर्ष:
यह मामला केवल एक मीम का नहीं है, यह न्यायिक और मीडिया बायस के आईने में दिखता हुआ एक सच्चा सवाल है —
क्या कानून सबके लिए बराबर है, या फिर कुछ के लिए ‘ज़्यादा बराबर’?