भारत की आध्यात्मिक परंपरा में ऐसे कई संत हुए जिन्होंने समाज की जागृति और धर्म की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उन्हीं में से एक थे स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती – एक ऐसा नाम जिसे आज बहुत कम लोग जानते हैं, या जानकर भूल चुके हैं। लेकिन उनका जीवन और बलिदान भारतीय समाज और सनातन धर्म के लिए अमिट संदेश छोड़ गया है।
जन्माष्टमी की भयावह रात – 23 अगस्त 2008
अगस्त 2008 की जन्माष्टमी की रात, उड़ीसा के कंधमाल जिले का शांत आश्रम गोलियों की गड़गड़ाहट से दहल उठा।
25-30 हमलावर AK-47 राइफलों से लैस होकर पहुंचे और 84 वर्षीय स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। स्वामी जी के साथ चार अन्य संत भी शहीद हो गए। इतना ही नहीं, हत्यारों ने उनके शव को भी क्षत-विक्षत कर दिया।
यह केवल हत्या नहीं थी, यह एक संदेश था — कि जनजातीय समाज अपनी संस्कृति, परंपरा और धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपनाए, अन्यथा उन्हें इसी तरह का दंड मिलेगा।
जनजातीय संस्कृति के रक्षक
स्वामी जी मूलतः गुरुजंगा (उड़ीसा) से थे। युवावस्था में ही उन्होंने सन्यास लेकर हिमालय में साधना की।
1968 में ईश्वरीय प्रेरणा से वे कंधमाल लौटे। वहां उन्होंने देखा कि ईसाई मिशनरियां बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कर रही थीं।
जनजातीय संस्कृति और परंपरा समाप्त होने के कगार पर थी।
स्वामी जी ने संकल्प लिया —
- जनजातीय और दलित समुदायों को शिक्षा से जोड़ने का।
- समाज को धर्मांतरण की साजिशों से जागरूक करने का।
- ग्रामीणों को कानूनी अधिकारों के प्रति सचेत करने का।
उन्होंने अनेक गुरुकुल, कन्या आश्रम और महाविद्यालय खोले, मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया, और संस्कृत-वेदीय शिक्षा का प्रसार किया।
सामाजिक सुधार और आंदोलन
1986 में उन्होंने भगवान जगन्नाथ की अनोखी रथयात्रा निकाली, जिसमें ग्रामीणों को शराब और अंधविश्वास छोड़ने का प्रण दिलाया गया।
स्वामी जी ने गाय पालन, आधुनिक कृषि और संस्कृत शिक्षा से ग्रामीणों का जीवन स्तर सुधारा।
उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि ईसाई मिशनरियों के लिए धर्मांतरण असंभव होने लगा।
षड्यंत्र और हमला
स्वामी जी पर पहले भी आठ बार हमले हो चुके थे।
2007 में एक हमले के दौरान हमलावरों ने खुलेआम कहा था –
“दिल्ली में हमारी सरकार है, हम कुछ भी कर सकते हैं।”
कांग्रेस के ईसाई सांसद राधाकांत नायक पर षड्यंत्र का आरोप लगा। वह अमेरिकी NGO वर्ल्ड विज़न से जुड़ा बताया गया, जो धर्मांतरण के लिए कुख्यात है।
मीडिया और सरकार की भूमिका
हत्या के बाद उड़ीसा सरकार ने दावा किया कि यह काम माओवादियों का है।
जबकि स्थानीय समाज जानता था कि इसके पीछे ईसाई मिशनरी गिरोह हैं।
भारतीय और विदेशी मीडिया ने मिशनरियों के पक्ष में माहौल बनाया।
संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और कैथोलिक चर्च तक ने इस मामले में हस्तक्षेप किया।
लेकिन भारत की “सेकुलर” सरकारें — केंद्र और राज्य, दोनों — ने न तो स्वामी जी की हत्या की निंदा की और न ही कोई न्यायपूर्ण कदम उठाया।
न्याय की अधूरी कहानी
2013 में कोर्ट ने सात ईसाइयों को दोषी ठहराया, लेकिन असली षड्यंत्रकारी – मिशनरी संगठन और विदेशी NGOs – बचा लिए गए।
2015 में जांच आयोग की रिपोर्ट भी दबा दी गई।
आज भी कंधमाल में 1200 से अधिक चर्च और सैकड़ों विदेशी मिशनरी संगठन सक्रिय हैं।
विरासत और प्रेरणा
स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या से उनका शरीर भले नष्ट कर दिया गया,
लेकिन उनकी चेतना आज भी जीवित है।
उन्होंने जो आंदोलन शुरू किया –
- शिक्षा,
- सामाजिक सुधार,
- और धर्म की रक्षा –
वह आज भी समाज को प्रेरित कर रहा है।
उनका बलिदान हमें याद दिलाता है कि –
👉 एक जीवित समाज अपनी लड़ाई स्वयं लड़ता है।
👉 किसी भी सत्ता या सरकार पर निर्भर हुए बिना, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए साहस और एकता ही सबसे बड़ा हथियार है।