शिवांगी गोयल माफीनामा : न्याय, परजरी और भारतीय अदालतों का दोहरा मापदंड

आईपीएस अधिकारी से घरेलू हिंसा सर्वाइवर तक

कुछ समय पहले देश के प्रमुख समाचार पत्रों में एक विज्ञापन छपा, जिसमें आईपीएस अधिकारी शिवांगी गोयल ने अपने पति और ससुराल वालों से सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगी। यह माफीनामा साधारण नहीं था, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रकाशित हुआ।
दरअसल, अदालत में सिद्ध हुआ कि शिवांगी गोयल ने अपने ससुराल वालों पर दहेज और घरेलू हिंसा के झूठे मुकदमे दर्ज करवाए थे। इन आरोपों के चलते उनके पति और ससुर ने 100 दिन से अधिक जेल में बिताए।

लेकिन जब सच सामने आया तो अदालत ने उन्हें सजा देने के बजाय समाचार पत्रों में विज्ञापन छपवाकर माफी मांगने का आदेश दिया। इतना ही नहीं, यह भी सुनिश्चित किया गया कि इस कथित दंड का उनकी नौकरी पर कोई असर न पड़े।


न्याय के नाम पर अलग-अलग पैमाने

याद कीजिए, हाल ही में पुणे में एक पोर्शे कार हादसे में दो इंजीनियरों की जान गई थी। उस मामले में आरोपी को केवल 300 शब्दों का निबंध लिखने की सजा मिली।
सवाल उठता है — सुप्रीम कोर्ट और पुणे की अदालत के फैसलों में इतना बड़ा फर्क क्यों?


झूठे मुकदमों की हकीकत

  • अनुमान है कि देश में दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के करीब 70-75% केस फर्जी होते हैं।
  • इनका असली उद्देश्य अक्सर भरण-पोषण और एलुमनी के नाम पर मोटी रकम वसूलना होता है।
  • सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतें कई बार कह चुकी हैं कि धारा 498A और डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है।

फिर भी, इन कानूनों को सुधारने का कोई गंभीर प्रयास नहीं दिखता।


परजरी: अदालत में झूठ बोलने का अपराध

भारतीय कानूनों में अदालत में झूठ बोलना या झूठा सबूत पेश करना गंभीर अपराध है, जिसे परजरी (Perjury) कहते हैं।

  • बीएएनएस धारा 29: शपथपत्र पर झूठ बोलने पर 7 साल तक जेल
  • आईपीसी धारा 209 / बीएएनएस धारा 246: गलत इरादे से झूठ बोलने पर 2 साल तक जेल
  • सीआरपीसी धारा 340 / बीएएसएस धारा 379: परजरी की रोकथाम के लिए बनाई गई

ब्रिटेन जैसे देशों में इस अपराध पर कड़ी कार्रवाई होती है। जेफ्री आर्चर जैसे लेखक भी जेल गए।
भारत में हालांकि, वैवाहिक मामलों में परजरी को लगभग नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।


उदाहरण: जब झूठ बोलने पर हुई सजा

  • 7 जुलाई 2025, विशाखापत्तनम कोर्ट: दहेज के झूठे आरोप लगाने पर महिला के खिलाफ धारा 340 में केस दर्ज।
  • 10 फरवरी 2020, गुजरात कोर्ट: भरण-पोषण के लिए फर्जी दस्तावेज़ पेश करने पर महिला को 6 साल की सजा

लेकिन ऐसे मामले अपवाद हैं। अधिकांश बार महिलाएँ बच जाती हैं।


क्यों बढ़ रहे हैं झूठे वैवाहिक केस?

  1. पैकेज की तरह केस जोड़ना – तलाक की याचिका के साथ ही घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न जैसे केस भी जोड़ दिए जाते हैं।
  2. वकीलों का धंधा – फर्जी केस उनकी कमाई का बड़ा साधन बन चुके हैं।
  3. लंबी अदालती प्रक्रिया – मुकदमे सालों चलते रहते हैं, जिससे दोनों पक्ष फंसे रहते हैं।
  4. सरकार और न्यायपालिका की उदासीनता – किसी को भी इस व्यवस्था को बदलने में रुचि नहीं।

समाज और न्यायपालिका की जिम्मेदारी

  • यदि सुप्रीम कोर्ट ने शिवांगी गोयल को जेल भेजा होता तो यह सख्त संदेश जाता और हजारों फर्जी मुकदमे खुद-ब-खुद खत्म हो जाते।
  • परजरी को गंभीरता से लिया जाए तो लाखों लंबित केस कम हो सकते हैं
  • फर्जी मुकदमे करने वाली महिलाओं और उन्हें उकसाने वाले वकीलों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

निष्कर्ष

शिवांगी गोयल का माफीनामा दरअसल सजा नहीं, सुरक्षा कवच है। इस तरह की नरमी से झूठे केसों का कारोबार और बढ़ेगा।
जब तक परजरी को अदालतों में गंभीरता से नहीं लिया जाएगा और दुरुपयोग पर कड़ी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक साधारण परिवार न्याय की बजाय अन्याय के शिकार होते रहेंगे