अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार उन्होंने अमेरिकी टेक कंपनियों को भारत में आईटी का काम आउटसोर्स करने से रोकने का विचार रखा है। उनका कहना है कि अमेरिकी नौकरियां सबसे पहले अमेरिका के लोगों को मिलनी चाहिए।
असर कहां पड़ेगा
इस फैसले का सीधा असर H-1B वीज़ा प्रोग्राम पर पड़ेगा। इस वीज़ा के जरिए हर साल लाखों भारतीय पेशेवर अमेरिका जाते हैं और वहां काम करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक, करीब 72 प्रतिशत H-1B वीज़ा भारतीयों के पास होते हैं। अगर यह प्रस्ताव लागू हुआ तो भारतीय युवाओं के लिए अमेरिका में नौकरी पाना मुश्किल हो जाएगा।
IBM और Accenture जैसी बड़ी कंपनियां जो भारत में आईटी सेवाएं चला रही हैं, उन्हें अपना काम अमेरिका वापस ले जाना पड़ेगा। इसका मतलब यह भी है कि अमेरिका में करीब 5 लाख नौकरियां वापस जा सकती हैं, लेकिन भारत के आईटी सेक्टर में लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी खतरे में पड़ सकती है।
अलग-अलग प्रतिक्रियाएं
अमेरिका के भीतर कई लोग इस कदम का समर्थन कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे अमेरिकी युवाओं को ज्यादा मौके मिलेंगे। वहीं भारत इस पहल को एक आर्थिक झटका मान रहा है। बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे आईटी हब शहरों की रफ्तार पर सीधा असर पड़ सकता है।
आगे का रास्ता
ट्रम्प पहले भी ऑफशोरिंग और आउटसोर्सिंग का विरोध कर चुके हैं। यह योजना उनकी उसी नीति का हिस्सा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या अमेरिकी कंपनियां भारत जैसी कम लागत और तेज गति वाली सेवाएं अपने देश में हासिल कर पाएंगी?
यह प्रस्ताव अभी विचार स्तर पर है, लेकिन अगर लागू हुआ तो यह न केवल अमेरिकी राजनीति को प्रभावित करेगा बल्कि भारत की आईटी इंडस्ट्री के लिए भी बड़ी चुनौती बन सकता है।