ज़रा सोचिए, अगर किसी कार में ब्रेक ही न हों या स्टेयरिंग न काम करे तो क्या होगा? चाहे इंजन कितना भी ताक़तवर क्यों न हो, एक मोड़ पर ज़रा-सी चूक उसे हादसे में बदल सकती है। यही हाल हमारे जीवन का भी है। नाम, शोहरत, पैसा सब कुछ होने के बाद भी अगर भीतर आत्मसंयम का ब्रेक और सही दिशा दिखाने वाला वेदांत ज्ञान न हो, तो ज़िंदगी कहीं भी पटरी से उतर सकती है।
ये बात हमें याद दिलाती है कि असली सफलता सिर्फ बाहर की चमक में नहीं, बल्कि उस सधी हुई समझ में है जो हर फैसले के पीछे काम करती है। आत्मसंयम हमें रुकने की ताक़त देता है—जब गुस्सा चढ़ रहा हो, जब लालच खींच रहा हो, जब किसी हाल में तुरंत प्रतिक्रिया देने का मन हो। वहीं वेदांत का ज्ञान हमें ये देखने की नज़र देता है कि कौन-सा रास्ता सही है, कौन-सा बस दिखने में चमकदार है।
तेज़ रफ्तार वाली इस दुनिया में हम सब कुछ जल्दी पाना चाहते हैं। लेकिन अगर मन पर काबू नहीं, तो रफ्तार ही थकावट और पछतावे में बदल जाती है। थोड़ा समय अपने लिए निकालना, ध्यान करना, किताबों या संतों की सीख से जुड़ना, रोज़ बस पाँच मिनट अपने विचारों को देखना—ये छोटे-छोटे कदम मन को स्थिर करते हैं और भीतर की स्टेयरिंग को मज़बूत बनाते हैं।
यह संदेश सिर्फ साधकों या बुज़ुर्गों के लिए नहीं, हर उस इंसान के लिए है जो खुशहाल और संतुलित जीवन जीना चाहता है। आपकी गाड़ी आप ही चला रहे हैं, बस याद रहे कि रफ्तार जितनी भी हो, ब्रेक और स्टेयरिंग हमेशा सही हालत में रहें।