जापान ने भारतीय छात्रों और पेशेवरों को आकर्षित करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर्स और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में पढ़ाई और काम करने के इच्छुक लोगों को अब फुल स्कॉलरशिप, इंग्लिश मीडियम प्रोग्राम और फास्ट-ट्रैक वीज़ा जैसी सुविधाएं दी जाएंगी।
सरकार और यूनिवर्सिटियों के इस संयुक्त अभियान का मकसद भारत से प्रतिभाशाली युवाओं को जापान में लाना है। अगले पांच साल में 15,000 भारतीय छात्रों को वहाँ भेजने और 2030 तक दोनों देशों के बीच 5 लाख लोगों के आदान-प्रदान का लक्ष्य रखा गया है। जापान अपनी उम्रदराज़ होती आबादी से पैदा हो रहे श्रम संकट का समाधान तकनीकी क्षेत्र में विदेशी विशेषज्ञता लाकर करना चाहता है।
अमेरिका की वीज़ा नीति ने बनाया मौका
यह पहल ऐसे समय में की गई है जब अमेरिका ने अपनी H-1B वीज़ा फीस में भारी बढ़ोतरी का ऐलान किया है। अक्टूबर 2025 से प्रति आवेदन शुल्क 1 लाख डॉलर और अतिरिक्त 250 डॉलर “इंटीग्रिटी फीस” देनी होगी। मौजूदा समय में H-1B वीज़ा का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा भारतीय पेशेवरों को मिलता है। नई लागत भारतीय आवेदकों पर सीधा असर डालेगी और जापान इसे एक अवसर के रूप में देख रहा है।
टेक टैलेंट की होड़ में जापान की रणनीति
दुनिया भर में टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। जापान लंबे समय से अपने कार्यबल में कमी झेल रहा है। अब वह अंग्रेज़ी में पढ़ाए जाने वाले कोर्स, छात्रवृत्ति और वीज़ा प्रक्रिया में सरलता लाकर खुद को भारतीयों के लिए एक आकर्षक विकल्प के रूप में पेश करना चाहता है।
सरकार का मानना है कि भारतीय इंजीनियर और शोधकर्ता न सिर्फ़ उसकी टेक इंडस्ट्री को मज़बूत करेंगे, बल्कि नवाचार और विकास में भी नई ऊर्जा लाएंगे।
छात्रों और प्रोफेशनलों के लिए नया रास्ता
अब तक जो छात्र और पेशेवर उच्च शिक्षा या करियर के लिए ज़्यादातर अमेरिका की ओर रुख करते थे, उनके लिए जापान एक मजबूत विकल्प बन सकता है। फुल स्कॉलरशिप और तेज़ वीज़ा प्रक्रिया इसे और व्यावहारिक बनाते हैं।