आज पूरे देश में महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती श्रद्धा और भाव से मनाई जा रही है। वे सिर्फ ‘रामायण’ के रचयिता नहीं थे, बल्कि वो व्यक्ति थे जिन्होंने अपने जीवन से यह दिखाया कि कोई भी इंसान चाह ले तो अपना रास्ता बदल सकता है।
वाल्मीकि जी का असली नाम रत्नाकर था। शुरुआत में वो जंगलों में राहगीरों को लूटने वाला डाकू था। लेकिन एक दिन महर्षि नारद से हुई मुलाकात ने सब कुछ बदल दिया। नारद के शब्दों ने उनके भीतर ऐसा असर छोड़ा कि उन्होंने अपना पुराना जीवन छोड़ दिया और साधना में लग गए। वर्षों की तपस्या के बाद वही रत्नाकर वाल्मीकि कहलाए — एक ऐसा ऋषि जिसने आत्मज्ञान से खुद को नया जन्म दिया।
इसी गहन साधना के बाद उन्होंने वह रचना की जिसे आज हम ‘रामायण’ के नाम से जानते हैं। रामायण सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, यह आदर्शों, मूल्यों और जीवन के गहरे अर्थों को सहज भाषा में कहने वाला महाकाव्य है। इसमें एक राजा का संघर्ष भी है, एक बेटे की मर्यादा भी और एक इंसान की संवेदनशीलता भी। वाल्मीकि जी ने श्रीराम के जीवन के ज़रिए यह बताया कि आदर्श पर टिके रहना आसान नहीं होता, लेकिन वही जीवन को अर्थ देता है।
रामायण की गूंज सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि एशिया के कई देशों में सुनाई देती है। यह एक ऐसी कथा है जो भाषा और समय की सीमाओं से परे जाकर लोगों के दिलों में जगह बना चुकी है।
आज जब समाज में मूल्य, मर्यादा और सादगी जैसी बातें धीरे-धीरे पीछे छूटती जा रही हैं, तब वाल्मीकि जी की बातें पहले से ज़्यादा ज़रूरी लगती हैं। उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि कोई भी इंसान चाहे तो खुद को बदल सकता है, और एक सही दिशा में चलकर दूसरों के लिए भी प्रकाश बन सकता है।
महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती हमें सिर्फ उनके महान कार्यों की याद नहीं दिलाती, बल्कि यह भी सिखाती है कि आत्मबोध और साधना से जीवन में कितना गहरा परिवर्तन लाया जा सकता है। उनके शब्द और उनकी यात्रा आज भी उतनी ही जीवंत हैं, जितनी सदियों पहले थीं।
इस अवसर पर हम आदिकवि वाल्मीकि जी को नमन करते हैं — जिन्होंने शब्दों में वह ताकत भरी जो पीढ़ियों को दिशा देती रही है।