रूस में आयुर्वेद की बढ़ती लोकप्रियता

भारत और रूस के बीच दशकों पुरानी दोस्ती अब आयुर्वेद के क्षेत्र में भी नई ऊंचाइयां छू रही है।

रूस में आयुर्वेद 1989 से आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति बन चुका है।

चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के बाद सोवियत डॉक्टरों ने विकिरण प्रभावित मरीजों के इलाज के लिए आयुर्वेद का सहारा लिया।

भारतीय चिकित्सकों ने रूसी डॉक्टरों के साथ मिलकर सिरदर्द, अनिद्रा, जोड़ों के दर्द और कमजोर इम्यूनिटी जैसी समस्याओं पर सफलतापूर्वक उपचार किया।

1996 से 1998 के बीच मास्को में 85 पीड़ितों पर किए गए आयुर्वेदिक उपचार में अधिकांश मरीजों को महत्वपूर्ण राहत मिली।

साल 1990 में सोवियत स्वास्थ्य मंत्रालय ने आयुर्वेद को स्वास्थ्य प्रणाली में शामिल करने के लिए विशेष विभाग बनाया।

250 से अधिक रूसी डॉक्टरों को मॉस्को में पहले आयुर्वेदिक ट्रेनिंग कोर्स में प्रशिक्षित किया गया।

1996 से 2005 तक नामी आयुर्वेद सेंटर में भारतीय विशेषज्ञों ने 1500 से अधिक मरीजों का सफल इलाज किया।

2003 में ‘वश्य आयुर्वेद’ और 2005 में रूस-भारत आयुर्वेद संघ के गठन से आयुर्वेद को और बढ़ावा मिला।

आज रूस की पीपुल्स फ्रेंडशिप यूनिवर्सिटी में अलग आयुर्वेद विभाग है जहां भारतीय प्रोफेसर प्रशिक्षण देते हैं।

रूसी बाजार में च्यवनप्राश, त्रिफला गुग्गुलु, ब्राह्मी रसायन, भृंगराज जैसी भारतीय औषधियां व्यापक रूप से उपलब्ध हैं।

देश में 1,000 से अधिक स्पा सेंटर हैं, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा पंचकर्म और अभ्यंगम जैसी सेवाएं देता है।

रूस के हर उम्र के लोग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद पर भरोसा कर रहे हैं।

भारत-रूस संबंधों में आयुर्वेद अब एक मजबूत सांस्कृतिक और स्वास्थ्य सेतु बन चुका है।