धार, मध्यप्रदेश का भोजशाला-कमाल मौला मस्जिद परिसर एक ऐतिहासिक स्थल है जिसे लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों में विवाद चल रहा है। हिंदू समुदाय इसे वाग्देवी (देवी सरस्वती) का मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे 11वीं सदी का कमाल मौला मस्जिद कहता है। यह स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है।
एएसआई की रिपोर्ट
हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में इस परिसर के सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश की है। एएसआई के अधिवक्ता हिमांशु जोशी ने बताया कि 2000 पन्नों की रिपोर्ट पेश की गई है। यह सर्वे 22 मार्च से शुरू हुआ था और 98 दिनों तक चला।
हिंदू पक्ष का दावा
हिंदू पक्ष के याचिकाकर्ता का दावा है कि एएसआई सर्वे में भोजशाला में देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं। इस दावे को आधार बनाते हुए हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आश्वासन दिया है कि वे इस मामले को देखेंगे।
मुस्लिम पक्ष का रुख
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह स्थल कमाल मौला मस्जिद है और वे इसके संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं।
एएसआई का वैज्ञानिक सर्वेक्षण
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 11 मार्च को एएसआई को इस विवादित स्थल का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इसके बाद 22 मार्च से सर्वेक्षण शुरू हुआ। सर्वेक्षण के दौरान एएसआई को भगवान शिव और ‘वासुकी नाग’ (सात फन वाला सांप) की पौराणिक मूर्तियों सहित कई पुरातात्विक अवशेष मिले।
रिपोर्ट की प्रस्तुति
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2 जुलाई को रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था, लेकिन एएसआई ने चार हफ्तों की मोहलत मांगी थी। अंततः 15 जुलाई तक रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया गया।
वर्तमान स्थिति
वर्तमान में यह विवादित परिसर एएसआई के संरक्षण में है। हिंदुओं को प्रत्येक मंगलवार को परिसर में वाग्देवी (सरस्वती) मंदिर में पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुसलमानों को प्रत्येक शुक्रवार को परिसर के एक तरफ स्थित मस्जिद में नमाज अदा करने की अनुमति है।
इस प्रकार, भोजशाला विवाद पर एएसआई की रिपोर्ट और उच्च न्यायालय के आदेशों के बीच यह ऐतिहासिक स्थल अपने ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक विवादों के चलते सुर्खियों में बना हुआ है।