आषाढ अमावस्या और दीप पूजन का महत्व

डॉ दुसाने मधुबन होमिओपॅथी

नमस्कार! आज आषाढ अमावस्या है, एक महत्वपूर्ण दिन जिसे दीप पूजन, पुष्य नक्षत्र योग, और व्यतिपात योग के साथ मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर, आगामी समय में कई व्रत और वैकल्ये (उपवास और धार्मिक क्रियाएँ) शुरू होंगे। इन व्रतों के दौरान दीपक और समई (दीपदान) की आवश्यकता होती है, जिन्हें आज धूल और पोंछकर साफ कर लेना चाहिए और उनका पूजन करना चाहिए।

आध्यात्मिक महत्व

यही समय है जब हम अपने मन को भी निर्बाध और निर्मल बनाने का प्रयास करें। संयम, सदाचार, सद्वर्तन, सात्विक आहार और विचारों को अपनाते हुए, हम अपने शरीर रूपी दीपक को उज्ज्वल करें और आत्मज्योति की उपासना करें।

गताहारी अमावस्या

आज गताहारी (गत+आहार) अमावस्या है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि अब तक जो आहार हम लेते आ रहे थे, उसे बदलकर हल्का और सुपाच्य आहार अपनाना चाहिए। वर्षा ऋतु में पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, इसलिए पचने में भारी और वातुल आहार से बचना चाहिए। आज से अपने शारीरिक आहार को कम कर, आध्यात्मिक आहार जैसे ध्यान, जप, और साधना को बढ़ाना चाहिए।

धर्म और संयम का पालन

इस पवित्र तिथि पर अभक्ष भक्षण और अपेय पान (मांसाहार और मदिरा सेवन) से दूर रहकर अपने जीवन को धार्मिक और संयमित बनाएँ। गटारी (मांस और मदिरा सेवन की रात) मनाकर इस दिन का महत्त्व कम न करें और अपनी आत्मा की अधोगति न करें।

आत्मदीप का उजाला

हम सभी की आत्मा दीप स्वरूप में प्रज्वलित हो और नित्य आत्मपूजा हो, यही श्रीचरणों में हमारी प्रार्थना है।

अंतर्ज्योती बहिर्ज्योती प्रत्यग्ज्योती: परात्पर:
ज्योतीर्ज्योती: स्वयम् ज्योती आत्मज्योती शिवोस्म्यहम्

दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रुबुद्धी विनाशाय दीपज्योति: नमोस्तुति।।

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