आधिकारिक रूप से अजय, जिसे राघव के नाम से भी जाना जाता था, निर्दोष थे, लेकिन दुष्कर्म के झूठे आरोप में उन्हें चार साल, छह महीने, आठ दिन, यानी कुल 1653 दिन जेल में बंद किया गया। उन्होंने पीड़ा सहन की, लेकिन इंतजार किया… आखिरकार सत्य की जीत हुई। युवती के झूठ ज्यादा दिन टिक नहीं सका, और उन्हें अपने ही बयानों में उलझा दिया, जिससे सच्चाई सामने आई।
अपर सेशन कोर्ट ने निर्दोष की जेल में बिताए गए दिनों के अनुसार युवती को उतने ही दिन कारावास की सजा देने का आदेश दिया। उसके साथ ही पांच लाख 88 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया। एक महिला ने जर्माने की राशि से प्रभावित होकर पीड़ित व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई, क्योंकि उसने अपनी नाबालिग बेटी को दिल्ली ले जाकर दुष्कर्म किया था।
कुछ दिनों बाद पुलिस ने अजय को गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। उस समय लड़की को नाबालिग घोषित किया गया, जो वर्ष 2022 में बालिग हो चुकी थी। 13 अक्टूबर, 2023 को उसने तत्कालीन स्पेशल जज के सामने बयान बदल दिया, जिससे अजय को बरी कर दिया गया। इस घटना के बाद, 340 सीआरपीसी के तहत तत्कालीन कोर्ट के पेशकार ने सीजेएम कोर्ट को गुमराह करने का परिवाद दर्ज कराया, जिसमें युवती के झूठे बयान का उल्लेख किया गया।
यह घटना दर्शाती है कि अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पुलिस और न्यायालय को माध्यम बनाना अत्यंत निंदनीय है। महिलाओं को पुरुषों के हितों पर आघात की छूट नहीं दी जा सकती।” – ज्ञानेंद्र त्रिपाठी, अपर सेशन जज
