नई दिल्ली:- हमारा संविधान हमें अपने धर्म निर्वाध रूप से पालन करने की स्वतंत्रता देती है संविधान का अनुच्छेद 26 हमें यह स्वतंत्रता देती है की इस देश का हर नागरिक अपने मान्यता अनुसार किसी भी धर्म को बिना किसी दबाव या भय के मान सकता है एवं उसका प्रचार एवं प्रसार कर सकता है, फिर क्यों सिर्फ देश में सिर्फ हिंदु मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में रखा जा रहा है? यह प्रश्न उठना लाजिमी है क्योंकि आए दिन यह देखा जा रहा है कि मंदिरों के ट्रस्ट और खजाने पर पूर्ण सरकारी नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।इन अधिनियम एवं कानूनों के अंतर्गत सरकार के पास देश के 4 लाख मठ-मंदिर का नियंत्रण है लेकिन किसी भी चर्च, मजार, मस्जिद, दरगाह आदि पर कोई नियंत्रण नहीं है ।
मठ-मंदिरों में आये चढ़ावे पर कर लगता है तथा यह चढ़ावा राजनैतिक खर्च एवं हिन्दुओं के धर्मान्तरण आदि में उपयोग होता है । इसके विपरीत चर्च, मजार, मस्जिद, दरगाह आदि पर यह अधिनियम एवं कर लागू नहीं होता । सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय जी का यह भी कहना है कि अगर हिन्दू मठ- मंदिर सरकार के नियंत्रण से मुक्त हो जायें तो मठ-मंदिरों में आ रहे चढ़ावे से नए गुरुकुलों, गौशालाओं, यज्ञशालाओं आदि का निर्माण किया जा सकता है । मठ-मंदिरों में आया चढ़ावा केवल सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार पर खर्च होना चाहिए ।
तिरूपति मंदिर प्रसाद में पशु चर्बी (गाय, भैंस, मछली और सुअर) से निर्मित तेल का इस्तेमाल के बाद देश भर में यह मांग उठ रही है की मंदिरों और इससे जुड़े ट्रस्ट को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए।
तिरूपति ट्रस्ट के प्रमुख थे ईसाई
जगन मोहन रेड्डी सरकार ने वर्ष 2023 में तिरूपति मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख के रूप में करूणाकर रेड्डी को नियुक्त किया था जोकि एक ईसाई धर्म को मानने वाला व्यक्ति है, इन्हीं के कार्यकाल में मंदिर के प्रसाद निर्माण में घी के जगह पशु चर्बी का इस्तेमाल किया गया जबकि तिरूपति मंदिर ट्रस्ट देश भर में सबसे अमीर मंदिर ट्रस्ट है फंड की कमी की गुंजाइश कहीं से भी नहीं थी, फिर भी प्रसाद जैसे पवित्र चीज़ में चर्बी का इस्तेमाल हिंदु आस्था के साथ खिलवाड़ है।यह स्पष्ट है कि जगन मोहन रेड्डी सरकार में मंदिर का नियंत्रण ईसाईयों के हाथ में दे दिया गया था जो किसी अन्य धर्मावलंबियों के मामले में ऐसा देखने को नहीं मिलता है।
क्यों आवश्यक है मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराना
सुप्रीम कोर्ट हिंदू मंदिरों पर सरकारी कब्जे को कई मौकों पर अनुचित कह चुका है। 2019 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन धार्मिक स्थलों के प्रशासन का जिम्मा श्रद्धालुओं को दिया जाना चाहिए । जस्टिस बोबडे ने कहा था, ‘मैं नहीं समझ पाता कि सरकारी अफसरों को क्यों मंदिर का संचालन करना चाहिए ?’ उन्होंने तमिलनाडु का उदाहरण दिया कि सरकारी नियंत्रण के दौरान वहाँ अनमोल देव-मूर्तियों की चोरी की अनेक घटनाएँ होती रही हैं । सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में तमिलनाडु के प्रसिद्ध नटराज मंदिर पर सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का आदेश दिया था। सरकारी नियंत्रण के कारण मठ-मंदिरों की स्तिथि दिनोंदिन खराब होती जा रही है । मठ-मंदिरों की सम्पत्ति का उचित प्रबंध न होने से इनके पास धनाभाव हो गया है । भारी संख्या में मठ-मंदिर बंद हो गये हैं
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धार्मिक संस्थानों के प्रति इस तरह के भेद-भाव का संतों, हिन्दू संगठनों ने विरोध किया है ।