बेंगलुरू में दर्ज एक शिकायत ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य बीजेपी नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए हैं। जनाधिकार संघर्ष संगठन (JSP) के आदर्श अय्यर द्वारा दर्ज कराई गई इस शिकायत में दावा किया गया है कि चुनावी बॉन्ड योजना की आड़ में जबरन वसूली की गई, जिसमें कॉर्पोरेट संस्थाओं को भारी मात्रा में बॉन्ड खरीदने के लिए मजबूर किया गया। इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, कर्नाटक बीजेपी के नेता नलीन कुमार कतील और बीवाई विजयेंद्र का भी नाम शामिल है।
क्या है चुनावी बॉन्ड योजना?
चुनावी बॉन्ड योजना सरकार द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इसके तहत, कोई भी व्यक्ति या संस्था चुनावी बॉन्ड खरीदकर इसे राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दे सकता है। इस योजना को लेकर शुरुआत से ही पारदर्शिता और ग़लत इस्तेमाल को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
आरोप और जांच का दायरा
आरोप है कि इस योजना का उपयोग जबरन वसूली के लिए किया गया। कॉर्पोरेट संस्थाओं को हजारों करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदने के लिए मजबूर किया गया, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ED) की छापेमारी का भी हवाला दिया गया है। इस धन का उपयोग बीजेपी नेताओं द्वारा राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किए जाने का आरोप लगाया गया है।
बीजेपी का बचाव और राजनीतिक आरोप
बीजेपी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताया है। पार्टी ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड एक नीतिगत मामला है और इसमें कोई आपराधिक पहलू नहीं है। पार्टी ने आरोप लगाया कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर चल रहे मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) केस से ध्यान हटाने के लिए इस मुद्दे को उठाया जा रहा है। बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि सिद्धारमैया खुद जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करने में असमर्थ रहे हैं, और उनके खिलाफ 64 से अधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं।
सिद्धारमैया का पलटवार
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी पलटवार करते हुए सवाल उठाया कि यदि उनसे इस्तीफा देने की मांग की जा रही है, तो वही मानक निर्मला सीतारमण और बीजेपी के अन्य नेताओं पर क्यों लागू नहीं होते? सिद्धारमैया पर भी मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) से जुड़ी भूमि आवंटन घोटाले के मामले में लोकायुक्त पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की गई है।
राजनीतिक विवाद और न्यायिक प्रक्रिया
यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि बड़े राजनीतिक विवाद का रूप ले चुका है। जहां एक ओर बीजेपी इस पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है, वहीं विपक्ष इसे भ्रष्टाचार का बड़ा मामला बता रहा है। बेंगलुरू की विशेष अदालत द्वारा सीतारमण और अन्य नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया है, जिससे यह मामला और गंभीर हो गया है।
निष्कर्ष
चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर उठे इन आरोपों ने भारतीय राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। राजनीतिक दलों द्वारा चंदा लेने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के बजाय, यह योजना अब भ्रष्टाचार और जबरन वसूली के आरोपों से घिर चुकी है। हालांकि जांच एजेंसियों का काम अब यह साबित करना होगा कि इन आरोपों में कितनी सच्चाई है, लेकिन यह निश्चित है कि यह मामला आने वाले समय में राजनीतिक गलियारों में चर्चा का मुख्य केंद्र बना रहेगा।