नई दिल्ली: 3 अक्टूबर, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु पुलिस को सद्गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा स्थापित आध्यात्मिक संगठन ईशा फाउंडेशन के खिलाफ किसी भी तरह की आगे की कार्रवाई से रोक दिया। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ ने दिया, जो संगठन द्वारा दायर एक याचिका के बाद आया।
ईशा फाउंडेशन ने अपनी याचिका में शिकायत की थी कि मद्रास उच्च न्यायालय के 30 सितंबर के आदेश के बाद कोयंबटूर स्थित उनके आश्रम पर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों ने छापा मारा था। उच्च न्यायालय ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के जवाब में इस जांच का आदेश दिया था।
क्या है आरोप ?
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसकी दो बेटियां, जिनकी उम्र 42 और 39 वर्ष है, को आश्रम में बंधक बनाकर रखा गया है।फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि लगभग 150 पुलिसकर्मियों ने आश्रम के हर कमरे और हर व्यक्ति की जांच की, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हुआ। इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, “आप सेना या पुलिस को ऐसे प्रतिष्ठान में घुसने की अनुमति नहीं दे सकते।”तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत को सूचित किया कि पुलिस ने फाउंडेशन परिसर से वापसी कर ली है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय का आदेश बंदी प्रत्यक्षीकरण के अधिकार क्षेत्र से बाहर था, क्योंकि दोनों बेटियों ने पहले ही अदालत के समक्ष अपनी मर्जी से आश्रम में रहने की बात स्पष्ट कर दी थी।इसके बाद, अदालत ने इन महिलाओं से व्यक्तिगत बातचीत करने का निर्णय लिया और बातचीत के बाद न्यायालय ने बताया कि दोनों महिलाएं अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं।सुप्रीम कोर्ट ने मामले को अपने पास स्थानांतरित कर लिया और तमिलनाडु पुलिस को 18 अक्टूबर को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।