हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। असम में नागरिकता से जुड़े लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर यह निर्णय एक मील का पत्थर साबित हुआ है। कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के सेक्शन 6A की वैधता को बरकरार रखा है, जिसे 1985 में असम समझौते के तहत कानून में जोड़ा गया था। इस रिपोर्ट में हम इस फैसले का विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि यह विवाद क्यों और कैसे शुरू हुआ था।
सेक्शन 6A क्या है?
सेक्शन 6A को 1985 में असम समझौते के बाद नागरिकता कानून में जोड़ा गया था। इसका मुख्य उद्देश्य 24 मार्च 1971 से पहले असम में बसे लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना था। इस समय सीमा से पहले जो भी लोग असम में रह रहे थे, उन्हें भारत का नागरिक माना गया। वहीं, इसके बाद जो लोग असम में आए थे, उन्हें विदेशी माना जाएगा।
असम आंदोलन का इतिहास
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान बड़ी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थी असम आए थे। स्थानीय निवासियों ने विदेशी घुसपैठियों के खिलाफ विरोध करना शुरू किया, जिसे ‘असम आंदोलन’ के नाम से जाना गया। यह आंदोलन 1979 से 1985 तक चला, जिसमें भारी जनहानि हुई। असम समझौता इसी आंदोलन के परिणामस्वरूप हुआ, जिसके तहत बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान और निर्वासन का निर्णय लिया गया। इस समझौते के तहत सेक्शन 6A को लागू किया गया।
सेक्शन 6A पर विवाद
असम के कई संगठनों और एनजीओ का तर्क था कि यह प्रावधान असम के मूल निवासियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के खिलाफ है। उनका कहना था कि पूरे देश के लिए 1948 की समय सीमा है, तो फिर असम के लिए अलग समय सीमा क्यों होनी चाहिए? वहीं, असम के जनसंख्या संरचना में बदलाव और स्थानीय संस्कृति के खतरों को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लंबी बहस के बाद 4:1 के बहुमत से सेक्शन 6A को संवैधानिक करार दिया। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि संसद को नागरिकता देने का अधिकार है और असम की स्थिति को देखते हुए यह प्रावधान उचित है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि असम की ऐतिहासिक और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर यह कानून बनाया गया था।
अल्पमत की राय
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, जिन्होंने इस निर्णय के खिलाफ राय दी, का कहना था कि सरकार को 1971 के बाद असम में आए लोगों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकालने का प्रावधान भी लाना चाहिए था। उनका मानना था कि यदि सरकार ने ऐसा नहीं किया, तो यह कानून संवैधानिक नहीं हो सकता।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय असम की नागरिकता की समस्या को लेकर एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। कोर्ट ने सेक्शन 6A को संवैधानिक करार दिया है, जिससे असम में 1971 से पहले आए लोगों को राहत मिली है। लेकिन यह निर्णय असम की जनसांख्यिकी, संस्कृति, और राजनीतिक संतुलन पर दीर्घकालिक प्रभाव डालेगा।