प्रथम प्रयोग डेढ़-दो कागजी नींबू का रस एनिमा के साधन से गुदा में लें। दस-पन्द्रह बार संकोचन करें और कुछ समय लेटे रहें। इसके बाद शौच के लिए जाएं। यह प्रयोग चार-पाँच दिन में एक बार करें। तीन बार प्रयोग करने से ही बवासीर में लाभ मिलता है। साथ ही, हरड़ या बाल हरड़ (छोटी हरड़) के 2 से 5 ग्राम चूर्ण का नियमित सेवन करें। अर्श (बवासीर) पर अरण्डी का तेल लगाते रहें, इससे भी अत्यधिक लाभ होता है।
द्वितीय प्रयोग बड़ी इन्द्रफला की जड़ को छाया में सुखाकर, या कनेर की जड़ को पानी में घिसकर बवासीर पर लगाएं। यह प्रयोग लाभकारी होता है।
तृतीय प्रयोग नीम का तेल मस्सों पर लगाने से एवं 4-5 बूँद रोज पीने से बवासीर में आराम मिलता है।
चतुर्थ प्रयोग सूरन (जमीकंद) को उबालकर और सुखाकर उसका चूर्ण बना लें। इसमें 32 तोला सूरन का चूर्ण, 16 तोला चित्रक, 4 तोला सोंठ, 2 तोला काली मिर्च, और 108 तोला गुड़ मिलाकर छोटे बेर के आकार की गोलियाँ बना लें। इसे “सूरनवटक” कहते हैं। ऐसी 3-3 गोलियाँ सुबह और शाम सेवन करने से बवासीर में राहत मिलती है।
पंचम प्रयोग लगभग दो लीटर ताजी छाछ में 50 ग्राम जीरा पीसकर और थोड़ा-सा नमक मिलाकर रखें। जब भी पानी पीने की इच्छा हो, तब पानी की जगह यह छाछ पिएं। पूरे दिन पानी के स्थान पर यह छाछ ही सेवन करें। चार दिनों तक यह प्रयोग करें। मस्से ठीक हो जाएंगे। सात दिन तक प्रयोग जारी रखने से और अच्छा परिणाम मिलेगा।
षष्ठम प्रयोग छाछ में सोंठ का चूर्ण, सेंधा नमक, पिसा हुआ जीरा, और थोड़ी-सी हींग मिलाकर सेवन करें। इससे बवासीर में अत्यधिक लाभ होता है।
इन प्रयोगों का नियमित पालन करने से बवासीर की समस्या में सुधार होता है। साथ ही, पौष्टिक आहार और नियमित जीवनशैली अपनाना भी आवश्यक है।