भारतीय लोकतंत्र का पर्व: लोकसभा चुनाव

लोकसभा चुनाव के जरिए भारत के लोग अपनी एक सरकार चुनते हैं। लेकिन इस लोकतांत्रिक पर्व को संपन्न कराने में कितनी ताकत लगानी पड़ती है, इसका अंदाजा शायद वोट न करने वाले लोगों को नहीं होगा। चुनाव आयोग के अनुसार, पहले चरण की 102 सीटों के लिए हुए मतदान के दौरान ही करीब 18 लाख से अधिक मतदान अधिकारी 1.87 लाख मतदान केंद्रों पर मौजूद रहे। मतदान और सुरक्षा कर्मियों को लाने-ले जाने के लिए 41 हेलीकॉप्टर, 84 विशेष ट्रेनें और लगभग 1 लाख वाहन काम पर लगाए गए।

लोकसभा चुनाव की घोषणा 16 मार्च को हुई थी और इसे सात चरणों में कराया गया। 4 जून को मतगणना होनी है। अब इस जानकारी के बाद कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि देश का कितना खर्च लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए होता है। इसमें प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों का खर्च जोड़ दिया जाए तो 2024 का लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव है।

चुनाव संबंधी खर्चों पर पिछले करीब 35 साल से नजर रख रहे गैर-लाभकारी संगठन ‘सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज’ (सीएमएस) के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने दावा किया कि इस लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च 1.35 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2019 में खर्च किए गए 60,000 करोड़ रुपये से दोगुने से भी अधिक है। वहीं वाशिंगटन डीसी से संचालित गैर-लाभकारी संस्थान ‘ओपन सीक्रेट्स डॉट ओआरजी’ के अनुसार भारत में 96.6 करोड़ मतदाताओं के साथ, प्रति मतदाता खर्च लगभग 1,400 रुपये होने का अनुमान है। उसने कहा कि यह खर्च 2020 के अमेरिकी चुनाव के खर्च से ज्यादा है, जो 14.4 अरब डॉलर या लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये था।

अब तक तो देश के खर्च के बारे में ही आपने जाना। अब आप चुनाव के काम में लगे सरकारी कर्मचारियों की मेहनत को भी जान लें। भारत का भूगोल ऐसा है कि एकतरफ रेगिस्तान है तो दूसरी तरफ बर्फीली पहाड़ियां। कहीं माओवादियों का खतरा है तो कहीं उग्रवादियों का। कहीं जंगलों के बीच लोग रहते हैं तो कहीं गंदी स्लम बस्तियों में। इन सभी जगहों पर चुनाव कर्मचारी न सिर्फ पहुंचे बल्कि लोगों से मतदान करा एक लोकतांत्रिक सरकार चुनने में हरसंभव मदद की।

भीषण गर्मी, माओवादी इलाकों, हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों, कीचड़ से सने रास्तों, जंगलों, पहाड़ों से जूझते हुए इन मतदान कर्मियों ने 2024 लोकसभा चुनाव को संपन्न करा दिया। आपको जानकर हैरानी होगी कि महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में माओवादियों के गढ़ दंडाकारण्य में हेलीकॉप्टरों की मदद से चुनाव कर्मियों को उतारा गया। इसी तरह झारखंड के कान्हाचट्टी में पैदल चलकर चुनाव कर्मी पहुंचे। झारखंड के जिस बूढ़ा पहाड़ इलाके में नक्सलियों की हुकूमत चलती थी, वहां करीब 35 साल बाद हजारों वोटरों ने पहली बार ईवीएम के बटन पर अंगुलियां रखीं।

सातवें चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले मिर्जापुर में लोकसभा चुनाव के लिए ड्यूटी पर तैनात 7 होमगार्ड जवानों समेत 13 चुनाव कर्मियों की मौत हो गई। इन सभी कर्मियों की मौत के सटीक कारण का पता अभी नहीं चल सका है। हालांकि, हीटवेव से भी इंकार नहीं किया जा सकता। कई सड़कों पर सोते रहे। कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर अपने मतदान केंद्र तक पहुंचे। इसी तरह चुनाव ड्यूटी पर लगे कई सुरक्षा कर्मी छिटपुट हिंसा में घायल भी हो जाते हैं, जिनके बारे में आप और हम जान भी नहीं पाते। ऊबड़खाबड़, पथरीले, बर्फीले रास्तों से आते-जाते न जाने कितने बीमार पड़े होंगे, गिरे होंगे, घायल हुए होंगे लेकिन फिर भी अपने काम में चौकस रहे। सिर्फ और सिर्फ हमारे लोकतंत्र को बचाने के लिए। तो इनको एक सलामी तो बनती है।

सलामी उन नायकों को

भारत के लोकतंत्र को सफलतापूर्वक चलाने के लिए हर चुनाव कर्मचारी और सुरक्षा कर्मी की मेहनत को सलाम। उनका समर्पण और त्याग इस लोकतंत्र को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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