“अहमदाबाद प्लेन हादसा: मलबे से उठती चीखें, हर कहानी में एक अधूरा सपना”

अहमदाबाद विमान हादसा: 241 सपने जलकर राख, एक ज़िंदा — बाकी सवालों की कब्र में

गुरुवार दोपहर हादसे की ख़बर के साथ ही सिविल अस्पताल चीखों, आंसुओं और टूटे हुए रिश्तों का मंजर बन गया। एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 ने लंदन की उड़ान भरी थी, लेकिन तक़दीर उसे राख में उतार लाई।

कोई बेटे की तस्वीर लेकर दौड़ा, कोई पति की अंगूठी पहचानने आया, कोई नई दुल्हन अपनी दुनिया उजड़ते देखती रही। 241 जानें गईं — किसी के चाचा, किसी की मां, किसी के तीन मासूम बच्चे। डीएनए सैंपल अब पहचान बताएंगे, सरकार से पहले।

अस्पताल के बाहर एंबुलेंस की आवाजें थम चुकी हैं, पर भीतर सन्नाटा है — और बाहर इंतज़ार। लोग गुहार लगाते रहे, प्रशासन जानकारी छुपाता रहा। सरकारी जवाबदेही गायब, और बस एक घोषणा — “जांच होगी।”

लेकिन ये “जांच” उस रोती मां को क्या जवाब देगी जिसने बेटे को एयरपोर्ट छोड़ा और घर पहुंचने से पहले उसकी मौत की खबर सुनी?

अब सिस्टम कहता है — “पहले डीएनए दो, फिर भरोसा करो।” शायद ये नया भारत है, जहाँ टिकट लेते वक्त आधार नहीं माँगा गया, लेकिन लाश पहचानने के लिए डीएनए चाहिए।

आख़िर में सिर्फ़ एक आदमी बचा — और सरकार की संवेदनशीलता तो पहले से ही कोमा में है।