“अंबेडकर सबके हैं, बस सवाल करने वालों को छोड़कर!”

अंबेडकर चाहिए, लेकिन चुपचाप – जो बोलेगा, वो नक्सली!

आनंद तेलतुम्बड़े का कसूर? बस इतना कि उन्होंने अंबेडकर की असली बात याद दिलाई – और सिस्टम भड़क गया।पोती का पति होना भी काम नहीं आया, 956 दिन जेल में डाल दिया।

हर पार्टी अंबेडकर को पूजती है, लेकिन उनकी सोच से डरती है।

भगवा चोला पहना दो, बुत बना दो – लेकिन अगर कोई अंबेडकर की तरह सच बोले, तो उसे कुचल दो।

साफ़ है – ये सत्ता अंबेडकर को चाहती है, बशर्ते वो ज़िंदा न हों।