भुवनेश्वर का अनंत वासुदेव मंदिर, महाप्रसाद की अनोखी परंपरा

भगवान विष्णु को समर्पित देश भर में कई चमत्कारी मंदिर हैं, लेकिन ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित अनंत वासुदेव मंदिर अपनी विशेष आस्था, परंपरा और महाप्रसाद की अनूठी विधि के कारण अलग पहचान रखता है।

भुवनेश्वर के बिंदु सरोवर झील के किनारे बसा यह प्राचीन मंदिर भगवान विष्णु के सबसे पुराने और प्रसिद्ध मंदिरों में गिना जाता है, जहां का प्रसाद श्री जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद जितना ही पवित्र माना जाता है।

अनंत वासुदेव मंदिर की रसोई में महाप्रसाद आज भी सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार पकाया जाता है, जिसमें आधुनिक साधनों के बजाय पूरी श्रद्धा और पारंपरिक विधियों का पालन किया जाता है।

मंदिर में पहले भगवान अनंत वासुदेव को फलों का भोग लगाया जाता है, इसके बाद 56 भोगों से तैयार विशेष महाप्रसाद बनाया जाता है, जिसे मिट्टी के बर्तनों में उपलों की आंच पर पकाया जाता है।

महाप्रसाद में चावल, नारियल, विभिन्न सब्जियां, कई प्रकार की दालें और मसाले शामिल होते हैं, लेकिन इसमें लहसुन, प्याज और टमाटर का प्रयोग नहीं किया जाता, यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है।

इस पवित्र महाप्रसाद को पहले भगवान को अर्पित किया जाता है और फिर भक्तों में वितरित किया जाता है, जिसे ग्रहण करना अत्यंत शुभ और पुण्यदायक माना जाता है।

मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की प्रतिमा भी विशेष है, जहां उनके दाएं हाथ में सुदर्शन चक्र विराजमान है, जो महाभारत युद्ध के उस प्रसंग की याद दिलाता है जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन की रक्षा के लिए चक्र धारण किया था।

मान्यता है कि इसी कारण अनंत वासुदेव मंदिर में भगवान विष्णु को उग्रता और दयालुता दोनों के प्रतीक रूप में पूजा जाता है, जो भक्तों को साहस और करुणा का संदेश देता है।

मंदिर की वास्तुकला प्राचीन और भव्य है, विशाल गोपुरम पर उकेरी गई देवी-देवताओं की मूर्तियां और शिखर की कलाकृतियां श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं और भक्तिभाव में डुबो देती हैं।

गर्भगृह में भगवान विष्णु के साथ भगवान बलराम और देवी सुभद्रा की भी पूजा होती है, इसी कारण इसे कई श्रद्धालु दूसरा जगन्नाथ मंदिर भी कहते हैं।

अनंत वासुदेव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह ओडिशा की सांस्कृतिक विरासत, प्राचीन परंपराओं और भक्ति भाव का जीवंत प्रतीक भी माना जाता है।