असम में कानूनी कार्रवाई के कारण बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई- रिपोर्ट

बाल विवाह को रोकने के लिए असम सरकार द्वारा की गई सख्त कानूनी कार्रवाई के कारण राज्य में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है. एक अध्ययन रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर बुधवार को यहां ‘‘इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन’’ के अध्ययन दल की रिपोर्ट ‘टूवार्ड्स जस्टिस : इंडिंग चाइल्ड मैरेज’ जारी की गई. इसमें यह भी कहा गया है कि वर्ष 2022 में देश भर में बाल विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए, जिसमें सिर्फ 181 मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा हुआ. असम का उदाहरण देते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के प्रमुख प्रियंक कानूनगो और ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ (सीएमएफआई) के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि पूर्वोत्तर के इस राज्य का मॉडल सभी राज्यों में लागू होना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि असम की सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से बाल विवाह के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया है. असम मंत्रिमंडल ने कुछ महीने पहले यह फैसला किया था कि 14 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी करने वालों पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा. असम में इस सिलसिले में हजारों प्राथमिकी दर्ज कर बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया है. कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने असम सरकार पर बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर मुस्लिम समुदाय को प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया है. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘2021-22 से 2023-24 के बीच असम के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है. इस अध्ययन में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और असम के 20 जिलों के 1,132 गांवों से आंकड़े जुटाए गए जहां कुल आबादी 21 लाख है जिनमें 8 लाख बच्चे हैं.’’

इसके मुताबिक, असम सरकार के अभियान के कारण राज्य के 30 प्रतिशत गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग चुकी है जबकि 40 प्रतिशत उन गांवों में उल्लेखनीय कमी देखने को मिली जहां कभी बड़े पैमाने पर बाल विवाह का चलन था. रिपोर्ट में कहा गया है कि असम के इन 20 में से 12 जिलों के 90 प्रतिशत लोगों ने इस बात पर भरोसा जताया कि इस तरह के मामलों में प्राथमिकी और गिरफ्तारी जैसी कानूनी कार्रवाई से बाल विवाह को कारगर तरीके से रोका जा सकता है. इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘2022 में देश भर में बाल विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए, जिसमें सिर्फ 181 मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा हुआ. यानी लंबित मामलों की दर 92 प्रतिशत है. मौजूदा दर के हिसाब से इन 3,365 मामलों के निपटारे में 19 साल का समय लगेगा.’’ एनसीपीसीआर अध्यक्ष कानूनगो ने कहा, “प्राथमिकी दर्ज कर बाल विवाह रोकने के असम के मॉडल का देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों को भी अनुकरण करना चाहिए.”

उन्होंने आगे कहा, ‘‘आयोग अपने रुख को लेकर स्पष्ट है कि धार्मिक आधार पर बच्चों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए. बाल विवाह निषेध कानून (पीसीएमए) और पॉक्सो धर्मनिरपेक्ष कानून हैं और वे किसी भी धर्म या समुदाय के रीतिरिवाजों का नियमन करने वाले कानूनों से ऊपर हैं.” ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ के संस्थापक भुवन ऋभु ने रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए कहा, “असम ने यह दिखाया है कि निवारक उपायों के तौर पर कानूनी कार्रवाई बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता का संदेश पहुंचाने में सबसे प्रभावी औजार है. आज असम में 98 प्रतिशत लोग मानते हैं कि अभियोजन बाल विवाह को समाप्त करने की कुंजी है. बाल विवाह मुक्त भारत बनाने के लिए असम का यह संदेश पूरे देश में फैलना चाहिए.’’ उनका कहना था कि भारत को दुनिया को यह दिखाना होगा कि सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना तभी संभव है जब हम अगले दस साल में बाल विवाह मुक्त दुनिया के निर्माण के लिए ठोस और प्रभावी कानूनी कदम उठाएं

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