अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर बनने वाला भव्य राम मंदिर लगभग तैयार है और रामलला गर्भगृह में विराजमान हैं। मंदिर निर्माण की यह ऐतिहासिक प्रक्रिया दशकों पुराने विवाद, संघर्ष और कानूनी लड़ाई के बाद संभव हो सकी।
1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे का विध्वंस भारतीय राजनीति और सामाजिक परिदृश्य की सबसे अहम घटनाओं में से एक रहा। इससे पहले यह मामला 1885 से अदालत में लंबित था और 1990 के दशक में आंदोलन ने जोर पकड़ लिया।
6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों की भीड़ विवादित ढांचे तक पहुंची और सुरक्षा प्रयासों के बावजूद संरचना को गिरा दिया गया। भीड़ में मौजूद लोगों ने उपकरणों की मदद से गुंबदों को ढहाया और कुछ ही घंटों में पूरी संरचना ध्वस्त हो गई।
घटना के दिन रामकथा कुंज में बड़ा मंच तैयार किया गया था जहां कई प्रमुख नेता और संत मौजूद थे। सुबह तक पूजा और भजन का माहौल था, लेकिन दोपहर के बाद भीड़ अचानक नियंत्रण से बाहर हो गई और सुरक्षा बल स्थिति संभालने में असमर्थ रहे।
सीआरपीएफ ने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन पथराव के बीच बलों को पीछे हटना पड़ा। कई घंटे चले घटनाक्रम में राज्य प्रशासन भी हस्तक्षेप नहीं कर सका, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने पहले से निर्माण रोकने का आदेश दिया था।
इस घटना के बाद कई नेताओं पर मुकदमे दर्ज हुए थे, हालांकि बाद में इनमें से कई आरोप सिद्ध नहीं हुए। वर्षों चली कानूनी प्रक्रिया और सबूतों के आधार पर 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि पर राम मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दिया।
इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और आज इसका लगभग पूरा हो चुका स्वरूप अयोध्या के धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को नई पहचान दे रहा है।
