आधुनिक जीवनशैली में बढ़ती थकान, कमजोरी और तनाव के बीच आयुर्वेद की प्राचीन जड़ी बूटी अतिबला एक बार फिर चर्चा में है, आयुर्वेद ग्रंथों में इसे शरीर को अतिरिक्त बल देने वाली औषधि बताया गया है, गांव और देहात में इसका उपयोग आज भी घरेलू दवा के रूप में किया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार अतिबला की तासीर ठंडी होती है, यह मुख्य रूप से वात और पित्त दोष को संतुलित करने में मदद करती है, जिन लोगों को शरीर में जलन, दर्द या बार बार थकान महसूस होती है उनके लिए यह जड़ी बूटी उपयोगी मानी जाती है।
अतिबला का सबसे बड़ा लाभ शरीर की ताकत और ओज को बढ़ाना है, बीमारी के बाद कमजोरी, जल्दी थक जाना या शारीरिक ऊर्जा की कमी जैसी समस्याओं में इसे आयुर्वेदिक टॉनिक की तरह प्रयोग किया जाता है, इसका असर धीरे धीरे दिखाई देता है।
आयुर्वेद में अतिबला को वाजीकरण औषधि भी माना गया है, यह पुरुषों के यौन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक होती है, शुक्रधातु को पोषण देकर शुक्राणुओं की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करने में मदद कर सकती है।
तनाव, नींद न आना और चिड़चिड़ापन आज की आम समस्याएं बन चुकी हैं, अतिबला को एक प्रभावी नर्व टॉनिक माना जाता है, यह नसों को मजबूत करती है और दिमाग को शांत रखने में सहायक होती है।
वात दोष से जुड़ी समस्याओं जैसे झनझनाहट, नसों की कमजोरी और पुराने दर्द में अतिबला का पारंपरिक रूप से उपयोग किया जाता रहा है, आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार यह शरीर की सहनशक्ति बढ़ाने में भी मदद करती है।
जोड़ों के दर्द, गठिया और सूजन की समस्या से परेशान लोगों के लिए भी अतिबला लाभकारी मानी जाती है, इसके अंदर सूजन रोधी और दर्द निवारक गुण पाए जाते हैं, काढ़ा या लेप के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है।
अतिबला में मूत्रवर्धक गुण भी होते हैं, यह पेशाब से जुड़ी समस्याओं जैसे जलन, रुक रुक कर पेशाब आना या संक्रमण में राहत देने में सहायक हो सकती है, इसके बीज कब्ज और कठोर मल की समस्या में भी उपयोगी माने जाते हैं।
हालांकि अतिबला एक प्राकृतिक औषधि है, फिर भी गर्भवती महिलाओं और गंभीर बीमारी की दवा ले रहे लोगों को इसका सेवन डॉक्टर या वैद्य की सलाह से ही करना चाहिए, विशेषज्ञ बिना परामर्श स्वयं दवा लेने से बचने की सलाह देते हैं।
