बेंगलुरु के वार्थुर–गुंजूर रोड पर गड्ढों ने लोगों की ज़िंदगी को रोज़ का खतरा बना दिया है। शनिवार को आईटी प्रोफेशनल्स से लेकर स्थानीय परिवार तक, सब सड़क पर उतर आए। किसी के हाथ में बच्चे थे, किसी के हाथ में तख्तियां। सबकी मांग एक ही—“सड़क दो, बहाना नहीं।”
लोगों ने मानव श्रृंखलाएं बनाईं तो पुलिस ने उन्हें हटाने में देर नहीं की। फ्रीडम पार्क तक सीमित रहने की चेतावनी, गिरफ्तारी की धमकी… लेकिन सवाल वही का वही है: आखिर शहर की सबसे कमाई करने वाली सड़क को ठीक करने में इतनी सुस्ती क्यों?
उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने कहा कि गड्ढों के पीछे भारी बारिश जैसी “प्राकृतिक” वजहें हैं और दावा किया कि 7,000 गड्ढे भरे जा चुके हैं। सुनने में अच्छा लगता है, मगर रोज़ सफर करने वाले जानते हैं कि बारिश हर साल होती है, हादसे भी। तब सरकार का प्लान क्यों हर बार बरसात के साथ बह जाता है?
लोगों का कहना है कि यह सिर्फ वार्थुर की कहानी नहीं है। आईटी कंपनियों से भरा यह इलाका सरकार को सबसे ज्यादा टैक्स देता है, फिर भी बुनियादी सड़क तक न मिलना मज़ाक जैसा लगता है। विपक्ष भी अब यही कह रहा है कि सरकार “मरम्मत की तारीख़ों” से खेल रही है, जबकि जनता हर दिन गड्ढों में अपनी जान की बाज़ी लगा रही है।
बेंगलुरु के लिए यह सिर्फ ट्रैफिक या गड्ढों की समस्या नहीं है। यह भरोसे का मामला है—एक ऐसा शहर जो देश को तकनीक देता है, पर अपने ही लोगों को सुरक्षित सड़क नहीं दे पा रहा।