बॉम्बे हाई कोर्ट : धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के उपयोग को लेकर निर्देश

धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के उपयोग से संबंधित शिकायतें लंबे समय से सामने आ रही थीं। बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि लाउडस्पीकर किसी भी धर्म का आवश्यक हिस्सा नहीं है। इस फैसले ने इस मुद्दे पर एक नई दिशा प्रदान की है और प्रशासन तथा पुलिस को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

मुख्य घटनाक्रम

मुंबई के नेहरू नगर, कुर्ला ईस्ट और चुना भट्टी जैसे इलाकों की रेजिडेंट्स एसोसिएशन ने मस्जिदों में निर्धारित डेसिबल सीमा से अधिक लाउडस्पीकर के उपयोग को लेकर हाई कोर्ट में रिट पिटीशन दाखिल की।

  1. शिकायतों का आधार:
    • मस्जिदों से निर्धारित सीमा से अधिक ध्वनि स्तर।
    • शहरी निवासियों के लिए शोर प्रदूषण की समस्या।
    • पुलिस की निष्क्रियता।
  2. कानूनी प्रावधान:
    • “Noise Pollution Regulation and Control Rules, 2000” के अनुसार:
      • रेसिडेंशियल एरियाज में दिन के समय ध्वनि सीमा 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल निर्धारित है।
    • महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धारा 38 के तहत पुलिस कार्रवाई का अधिकार रखती है।
  3. कोर्ट का निर्देश:
    • पुलिस और सरकार को शोर प्रदूषण रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी होगी।
    • शिकायतकर्ता की पहचान गोपनीय रखी जाएगी।

ऑटोमैटिक मैकेनिज्म का सुझाव

हाई कोर्ट ने सुझाव दिया कि लाउडस्पीकर में ऐसा ऑटोमैटिक सिस्टम लगाया जाए जो डेसिबल स्तर को नियंत्रित कर सके। साथ ही, पुलिस अधिकारियों को ऐसे उपकरण और मोबाइल ऐप दिए जाने चाहिए, जो तुरंत ध्वनि स्तर को माप सकें।

पेनल्टी सिस्टम

कोर्ट ने चार-स्तरीय दंड प्रणाली को लागू करने का सुझाव दिया:

  1. पहली बार उल्लंघन: चेतावनी जारी करना।
  2. दूसरी बार उल्लंघन: जुर्माना लगाना।
  3. तीसरी बार उल्लंघन: लाउडस्पीकर को जब्त करना।
  4. बार-बार उल्लंघन: धार्मिक स्थल का लाइसेंस रद्द करना।

पुराने फैसलों का संदर्भ

हाई कोर्ट ने अपने 2016 के निर्णय को दोहराते हुए कहा कि “Noise Pollution Rules” का सख्ती से पालन होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले के अनुसार:

  • रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक साइलेंस जोन (स्कूल, अस्पताल, कोर्ट के 100 मीटर के दायरे में) में लाउडस्पीकर के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध।
  • 10 बजे से 12 बजे के बीच केवल विशेष अवसरों पर, साल में अधिकतम 15 दिनों के लिए अनुमति दी जा सकती है।

निष्कर्ष

बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय नागरिकों की शिकायतों को गंभीरता से लेने और शोर प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। धार्मिक स्थलों को यह समझना होगा कि लाउडस्पीकर का उपयोग धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा नहीं है और इसे नियंत्रित करना आवश्यक है।

इस फैसले से न केवल नागरिकों को राहत मिलेगी बल्कि यह सुनिश्चित होगा कि कानून का पालन हर क्षेत्र में समान रूप से हो।

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