केंद्रीय कैबिनेट ने बीमा क्षेत्र में बड़ा आर्थिक सुधार करते हुए बीमा कंपनियों में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। पहले इस सेक्टर में 74 प्रतिशत तक एफडीआई की सीमा लागू थी।
सरकार का कहना है कि इस निर्णय से बीमा उद्योग में विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा, जिससे कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा मजबूत होगी और ग्राहकों को बेहतर सेवाओं के विकल्प मिलेंगे।
बीमा कानून संशोधन विधेयक 2025 को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है, जो 19 दिसंबर को समाप्त होगा। लोकसभा बुलेटिन में यह विधेयक 13 महत्वपूर्ण बिलों की सूची में शामिल है।
इस विधेयक का उद्देश्य बीमा क्षेत्र को गति देना, ज्यादा कंपनियों को बाजार में लाना और हर नागरिक तक बीमा सेवाओं की पहुंच बढ़ाना है। इससे इंश्योरेंस सेक्टर में कारोबार करना आसान होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025–26 में बीमा उद्योग में एफडीआई सीमा 74 से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने का ऐलान किया था। यह कदम वित्तीय क्षेत्र में व्यापक सुधारों का हिस्सा बताया गया है।
वित्त मंत्रालय ने बीमा अधिनियम 1938 में कई संशोधनों का प्रस्ताव दिया है, जिनमें पूंजी की न्यूनतम आवश्यकता घटाना और कंपोजिट लाइसेंस फ्रेमवर्क लागू करना शामिल है। इससे कंपनियों को कई बीमा सेवाएं एक ही लाइसेंस के तहत देने की सुविधा मिलेगी।
इसके साथ ही जीवन बीमा निगम अधिनियम 1956 और आईआरडीएआई अधिनियम 1999 में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन प्रस्तावित हैं। इन बदलावों से बीमा नियमन को सरल बनाया जाएगा और उद्योग की कार्यकुशलता बढ़ेगी।
एलआईसी अधिनियम में संशोधन के बाद एलआईसी के बोर्ड को नई शाखाएं खोलने, कर्मचारियों की भर्ती और संचालन संबंधी फैसलों में अधिक अधिकार मिलेंगे। यह निगम की कार्यप्रणाली को तेज और स्वतंत्र बनाएगा।
सरकार का कहना है कि प्रस्तावित सुधार पॉलिसीधारकों की सुरक्षा बढ़ाएंगे, बीमा कवरेज को अधिक लोगों तक पहुंचाएंगे और देश में रोजगार सृजन में मदद करेंगे। इससे आर्थिक विकास में भी तेजी आने की उम्मीद है।
आधिकारिक बयान के अनुसार, इन सुधारों के लागू होने से बीमा उद्योग की पारदर्शिता बढ़ेगी, व्यापार संचालन आसान होगा और 2047 तक सभी नागरिकों को बीमा उपलब्ध कराने का लक्ष्य पूरा करने में मदद मिलेगी।
