उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में अपने एंटी कन्वर्जन कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। 2021 में जो कानून लव जिहाद कानून के नाम से प्रसिद्ध था, उसमें अब और भी सख्त प्रावधान जोड़े गए हैं। इस रिपोर्ट में हम इन संशोधनों का विश्लेषण करेंगे और जानेंगे कि इनके पीछे सरकार की क्या मंशा है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
नए संशोधन और उनकी महत्वपूर्ण बातें
सख्त सजा का प्रावधान
उत्तर प्रदेश विधानसभा ने हाल ही में “उत्तर प्रदेश अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलीजन अमेंडमेंट बिल 2024” पास किया है। इस संशोधन के तहत अगर किसी व्यक्ति को दोषी पाया गया कि उसने महिला के साथ गलत इरादे से शादी की है ताकि उसका धर्म परिवर्तन कराया जा सके, तो उसके लिए सजा को और सख्त कर दिया गया है। इसमें लाइफ इम्प्रिज़न्मेंट (जीवनभर की कारावास) तक का प्रावधान शामिल किया गया है।
एफआईआर और बेल की नई शर्तें
पहले, केवल संबंधित व्यक्ति के परिवार के सदस्य ही एफआईआर दर्ज करा सकते थे। लेकिन अब नए संशोधन के तहत “एनी पर्सन” यानी कोई भी व्यक्ति एफआईआर दर्ज करा सकता है। यह प्रावधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत लागू किया जाएगा। साथ ही, अब एफआईआर देश के किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई जा सकती है, न कि केवल उसी स्थान पर जहां अपराध हुआ है।
बेल मिलने की शर्तें भी सख्त कर दी गई हैं। अब आरोपी को तभी बेल मिलेगी जब पब्लिक प्रोसीक्यूटर उसके बेल का विरोध न करें और कोर्ट यह सुनिश्चित कर ले कि आरोपी वास्तव में निर्दोष है।
नए कैटेगरी और सजा का विस्तार
इस कानून में दो नए कैटेगरी जोड़े गए हैं:
- विदेशी फंडिंग: अगर कोई व्यक्ति विदेशी फंडिंग के बदले धर्मांतरण करवा रहा है, तो उसे 7 से 14 साल की सजा और 5 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है।
- धमकी: अगर कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन न करने पर धमकी देता है, तो उसे 20 साल तक की सजा और जीवनभर के लिए कारावास का प्रावधान किया गया है।
सरकार की मंशा और इसके पीछे का उद्देश्य
सरकार का कहना है कि इन संशोधनों का उद्देश्य समाज के उन वर्गों को सुरक्षित रखना है जो आसानी से प्रभावित हो सकते हैं, जैसे नाबालिग, दिव्यांग, महिलाएं और अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग। इन समूहों को कई बार जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का शिकार बनाया जाता है। सरकार का कहना है कि पुरानी सजा और प्रावधान पर्याप्त नहीं थे और इन्हें और सख्त बनाने की जरूरत थी।
उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण
हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी इस मुद्दे पर टिप्पणी की थी। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में बड़े स्तर पर धार्मिक कन्वर्जन हो रहा है और अगर यह इसी तरह चलता रहा, तो देश में बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक में बदल जाएगी। इस बयान ने इस कानून को और सख्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित किया।
विपक्ष और संभावित चुनौती
बीजेपी द्वारा शासित उत्तर प्रदेश में यह कानून लाया गया है और संभावना है कि अन्य बीजेपी शासित राज्यों में भी इसी तरह के संशोधन किए जाएंगे। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस कानून का विरोध किया है और इसे ध्यान भटकाने की कोशिश बताया है।
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) और जमाते उला उलमा ए हिंद जैसे एनजीओ ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में इस तरह के मामलों की सुनवाई हो रही है और सभी मामलों को एकत्रित करके सुप्रीम कोर्ट में सुना जाना चाहिए। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई कब होती है और इसका क्या परिणाम निकलता है।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश के एंटी कन्वर्जन कानून में किए गए ये बदलाव समाज के विभिन्न वर्गों को सुरक्षित रखने के लिए उठाया गया एक कदम है। हालांकि, इसके आलोचक भी हैं जो इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ मानते हैं। समय ही बताएगा कि यह कानून कितना प्रभावी साबित होता है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस बीच, समाज के विभिन्न वर्गों और सरकार के बीच संवाद और सहमति की जरूरत बनी रहेगी ताकि कानून का सही और न्यायपूर्ण उपयोग हो सके।