नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर जलवायु परिवर्तन पर काबू पाने के लिए देशों की मौजूदा राष्ट्रीय कार्य योजनाएं 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में 2019 के स्तर के मुकाबले महज 2.6 फीसदी की कमी ला पाएंगी। संयुक्त राष्ट्र की एक नयी रिपोर्ट तो कुछ यही बयां करती है।
जलवायु परिवर्तन का आकलन करने वाली संयुक्त राष्ट्र (संरा) की संस्था, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल ने कहा कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए वैश्विक उत्सर्जन में 2030 तक 43 फीसदी और 2035 तक 60 फीसदी कमी लाना जरूरी होगा।
संयुक्त राष्ट्र की नयी रिपोर्ट पेरिस समझौता अपनाने वाले 195 पक्षों की ओर से पेश 168 नवीनतम राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं के विश्लेषण पर आधारित है, जिन्हें नौ सितंबर, 2024 तक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) की रजिस्ट्री में दर्ज कराया गया है।
ताजा एनडीसी के हिसाब से 2030 में कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन (भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन एवं वानिकी और एलयूएलयूसीएफ को छोड़कर) लगभग 51.5 (48.3-54.7) गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है, “यह स्तर 1990 के मुकाबले 49.8 फीसदी और 2010 के मुकाबले 8.3 फीसदी अधिक, जबकि 2019 की तुलना में 2.6 प्रतिशत और 2025 के अनुमानित स्तर की तुलना में 2.8 प्रतिशत कम होगा, जिससे संकेत मिलता है कि वैश्विक उत्सर्जन 2030 से पहले ही चरम पर पहुंच सकता है।”
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु प्रमुख साइमन स्टील ने कहा कि रिपोर्ट के नतीजे कठोर हैं, लेकिन आश्चर्यजनक नहीं। उन्होंने कहा, “मौजूदा राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाएं उन आवश्यक उपायों से कोसों दूर हैं, जो वैश्विक तापमान वृद्धि को अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाने और अरबों लोगों के जीवन एवं आजीविका को नष्ट करने से रोकने के लिए अहम हैं।”
स्टील ने कहा कि देशों को फरवरी 2025 में अगले दौर की राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाएं पेश करनी हैं, जिसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों और महत्वाकांक्षा में उल्लेखनीय वृद्धि दिखनी चाहिए।
उन्होंने कहा, “ये कार्य योजनाएं भले ही राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित की जाती हैं और सभी के लिए उपयोगी नहीं होतीं, लेकिन इनमें उत्सर्जन में कमी के नये महत्वाकांक्षी लक्ष्य होने चाहिए, जिसमें सभी क्षेत्र और ग्रीनहाउस गैसें शामिल हों तथा तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने पर जोर दिया जाए।”
स्टील ने कहा, “इन कार्य योजनाओं को अलग-अलग क्षेत्रों और गैसों के हिसाब से तैयार किया जाना चाहिए। इसके अलावा, ये विश्वसनीय और ठोस नियमों, कानूनों एवं वित्तपोषण द्वारा समर्थित होनी चाहिए, ताकि लक्ष्यों की पूर्ति और उपायों का कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके।”