ग़ाज़ियाबाद की ताज़ा घटना एक बार फिर हमें झकझोरती है। जुबैर अली, जिसने खुद को “राहुल” बताकर एक महिला का विश्वास जीता, उसके साथ झूठे प्रेम और शादी का सपना दिखाया, नौकरी का लालच दिया—और फिर उसी भरोसे को हथियार बनाकर दुष्कर्म किया। अश्लील वीडियो बनाए गए, ब्लैकमेल किया गया, और धर्म परिवर्तन का दबाव डाला गया। सवाल यह है कि क्या यह महज़ एक आपराधिक घटना है, या फिर किसी गहरी साजिश का हिस्सा?
जवाब साफ़ है। यह वही पैटर्न है जिसे आज हम “लव जिहाद” के नाम से जानते हैं—जहाँ शुरुआत भरोसे से होती है और अंत बर्बादी, अपमान और शोषण में। जुबैर अली का यह चेहरा कोई अकेला नहीं है; यह उसी संगठित जाल की कड़ी है, जिसका बड़ा रूप हम छांगुर बाबा उर्फ़ जलालुद्दीन के धर्मांतरण रैकेट में देख चुके हैं।
छांगुर बाबा का नेटवर्क मस्जिदों के ज़रिये फैला हुआ था। जांच एजेंसियों ने बताया कि इस रैकेट को विदेशी फंडिंग से मज़बूती मिल रही थी—₹60 करोड़ से अधिक रकम भारत लाई गई, जिसमें से ₹21 करोड़ सीधे दुबई की एक कंपनी से आया। करोड़ों की संपत्तियाँ सहयोगियों के नाम खरीदी गईं। यह साफ़ कर देता है कि मामला केवल व्यक्तिगत अपराध का नहीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय साज़िश का है, जो योजनाबद्ध ढंग से समाज की नींव पर हमला कर रही है।
अगर हम केवल ग़ाज़ियाबाद की घटना को देखें तो लगेगा कि यह एक महिला की त्रासदी है। लेकिन जब हम इसे मध्य प्रदेश विधानसभा में रखे आँकड़ों से जोड़ते हैं—जहाँ 2020 से जुलाई 2025 तक 283 “लव जिहाद” के केस दर्ज हुए, जिनमें 71 नाबालिग पीड़िताएँ थीं—तो तस्वीर और स्पष्ट हो जाती है। यह कोई छिटपुट घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि एक संगठित उद्योग है, जो पूरे देश में फैल रहा है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि समाज और मीडिया की चुप्पी इन अपराधियों की सबसे बड़ी ताक़त है। जब तक हम इस पर सवाल नहीं उठाएँगे, जब तक हम इसे सिर्फ़ “व्यक्तिगत” अपराध मानकर अनदेखा करते रहेंगे—तब तक यह जाल और गहराता जाएगा। जुबैर अली जैसे चेहरे और छांगुर बाबा जैसे रैकेट उसी चुप्पी में फलते-फूलते हैं।
यह अब केवल बेटियों की सुरक्षा का सवाल नहीं रहा। यह संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय अस्तित्व का सवाल बन चुका है। अगर आज हमने कठोर कानून लागू नहीं किए, अगर बेटियों को शिक्षित और जागरूक नहीं किया, अगर ऐसे नेटवर्क की जड़ों को नहीं काटा—तो आने वाले समय में इसकी कीमत हर घर को चुकानी पड़ेगी।
आज सबसे बड़ा अपराध हमारी चुप्पी है। और यही चुप्पी अपराधियों की ताक़त है। समय आ गया है कि हम इसे तोड़ें—सवाल उठाएँ, आवाज़ बुलंद करें, और लव जिहाद के इस उद्योग को बेनकाब करें। क्योंकि अगर आज नहीं चेते, तो कल शायद बहुत देर हो जाएगी।