दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या चरम पर पहुंच गई है, विशेषज्ञों ने गुरुवार को कहा कि यह न केवल लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल रहा है, बल्कि जीवन प्रत्याशा और जीवन गुणवत्ता को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।
इन दिनों दिल्ली-एनसीआर घने स्मॉग की चादर में लिपटा हुआ है, रिहायशी इलाकों से लेकर सड़कों और एयरपोर्ट तक विजिबिलिटी बेहद कम हो गई है, जिससे रोजमर्रा की आवाजाही बाधित हो रही है और लोगों की चिंताएं लगातार बढ़ रही हैं।
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 356 दर्ज किया गया है, जो वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को दर्शाता है और स्वास्थ्य के लिए गंभीर चेतावनी माना जा रहा है।
विशेषज्ञों ने बताया कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने से स्ट्रोक, हृदय रोग, सांस संबंधी बीमारियां और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसी समस्याओं का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।
वायु प्रदूषण का असर केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे आर्थिक नुकसान भी हो रहा है, क्योंकि बीमारियों के कारण उत्पादकता घट रही है, चिकित्सा खर्च बढ़ रहा है और पर्यटन व व्यापार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ते मामलों के चलते हेल्थकेयर सिस्टम पर लगातार दबाव बढ़ रहा है, जिससे अस्पतालों और चिकित्सकीय संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के पूर्व सचिव राजेश भूषण ने कहा कि लंबे समय तक प्रदूषित वायु के संपर्क में रहने से जीवन प्रत्याशा कम होती है, लोग पुरानी बीमारियों के साथ लंबे समय तक जीने को मजबूर होते हैं और इससे उनकी कार्यक्षमता व आर्थिक योगदान प्रभावित होता है।
उन्होंने कहा कि ज्यादा प्रदूषित शहरों में लोग भले ही लंबे समय तक जीवित रहें, लेकिन पुरानी बीमारियों के कारण उनका जीवन स्तर और उत्पादकता कम हो जाती है, जिससे समग्र अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है।
राजेश भूषण ने जोर देकर कहा कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए हेल्थकेयर सिस्टम, शहरी नियोजन और जन जागरूकता के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है, जिसमें निवारक और प्राइमरी हेल्थकेयर पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
दिल्ली के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. जी. सी. खिलनानी ने वायु प्रदूषण को मानव निर्मित सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल बताया और कहा कि इसका सांस और हृदय स्वास्थ्य पर व्यापक और दीर्घकालिक असर पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के सबसे खतरनाक प्रभाव अक्सर दिखाई नहीं देते, क्योंकि सूक्ष्म कण फेफड़ों में गहराई तक जाकर खून में मिल जाते हैं और बिना शुरुआती चेतावनी के कई अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. दलजीत सिंह ने बताया कि प्रदूषण दिमाग में खून के संचार को प्रभावित करता है, जिससे इस्केमिक और हेमरेजिक दोनों तरह के स्ट्रोक का खतरा काफी बढ़ जाता है।
उन्होंने कहा कि ज्यादा प्रदूषण वाले महीनों में स्ट्रोक के मामलों में मौसमी बढ़ोतरी देखी जा रही है, साथ ही वायु प्रदूषण अल्जाइमर, डिमेंशिया और पार्किंसन जैसी बीमारियों से भी जुड़ रहा है।
फिक्की हेल्थ सेक्टर के मेंटर डॉ. हर्ष महाजन ने कहा कि वायु प्रदूषण लगभग हर बीमारी की श्रेणी को बढ़ाने वाला एक साइलेंट जोखिम कारक बन चुका है और इसका सबसे ज्यादा असर गरीबों, बच्चों और बाहर काम करने वाले लोगों पर पड़ता है।
उन्होंने चेतावनी दी कि केवल टेक्नोलॉजी के भरोसे इस संकट का समाधान संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए गंभीरता, जवाबदेही, कड़े नियमों का पालन और जागरूक जनता की भागीदारी बेहद जरूरी है।
विशेषज्ञों ने कहा कि स्वस्थ जीवन और मजबूत अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए वायु प्रदूषण के खिलाफ समन्वित और ठोस कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है।
