भारत और तालिबान के बीच कूटनीतिक संबंध: एक नया अध्याय

2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद, किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि भारत सरकार भविष्य में तालिबान के साथ सीधी बातचीत करेगी। लेकिन जियोपॉलिटिक्स की जटिलताओं और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने के कारण, यह स्थिति सामने आई। हाल ही में दुबई में भारत और अफगानिस्तान के बीच उच्च स्तरीय वार्ता हुई, जिसमें चाबहार पोर्ट और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई।

भारत-तालिबान वार्ता: मुख्य बिंदु

इस वार्ता में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब मुत्ताकी ने भाग लिया। वार्ता का उद्देश्य अफगानिस्तान में मानवतावादी सहायता, व्यापार, स्वास्थ्य सेवा सुधार, और शरणार्थियों के पुनर्वास जैसे मुद्दों पर सहयोग बढ़ाना था। दोनों देशों ने क्रिकेट और अन्य परियोजनाओं में सहयोग करने पर भी सहमति व्यक्त की।

भारत ने अफगानिस्तान के लिए अपने दीर्घकालिक निवेश और सहायता की प्रतिबद्धता को फिर से दोहराया। चाबहार पोर्ट के माध्यम से व्यापार को बढ़ावा देने और सलमा डैम, अफगानिस्तान की संसद, और स्टोर पैलेस जैसे परियोजनाओं को संरक्षित करने पर विशेष ध्यान दिया गया।

भारत के इस कदम के पांच प्रमुख कारण

  1. पाकिस्तान से बढ़ती दूरी: तालिबान और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ रहा है। यह भारत के लिए एक अवसर है कि वह अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करे और पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करे।
  2. ईरान की कमजोर स्थिति: मिडिल ईस्ट में जारी संघर्षों के कारण ईरान की भूमिका कमजोर हो गई है। भारत इस खाली स्थान को भरने की कोशिश कर रहा है।
  3. रूस की सीमित भागीदारी: रूस, जो पहले अफगानिस्तान में सक्रिय था, अब यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है। भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर अपनी भूमिका बढ़ा रहा है।
  4. अमेरिकी नीतियों में अनिश्चितता: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की संभावित वापसी से पहले भारत इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है।
  5. चीन की बढ़ती गतिविधियां: चीन अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है। भारत इसे संतुलित करने के लिए सक्रिय हो रहा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्व

भारत के लिए तालिबान के साथ यह जुड़ाव राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, यह आशंका थी कि अफगानिस्तान फिर से आतंकवादियों का आश्रय स्थल बन सकता है। भारत इस संभावना को रोकने के लिए तालिबान के साथ जुड़ाव बनाए रखना चाहता है।

पाकिस्तान की स्थिति

तालिबान के सत्ता में आने पर पाकिस्तान ने इसे अपनी जीत माना था। लेकिन हाल की घटनाओं ने यह दिखाया है कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच संबंध खराब हो गए हैं। पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में एयर स्ट्राइक और अन्य आक्रामक कदमों ने तालिबान को नाराज कर दिया है।

भारत का रणनीतिक दृष्टिकोण

भारत ने तालिबान को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए तालिबान के साथ जुड़ाव बढ़ा रहा है। यह कदम भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

निष्कर्ष

भारत और तालिबान के बीच बढ़ता सहयोग जियोपॉलिटिक्स में एक नया आयाम जोड़ रहा है। यह भारत की कूटनीतिक कुशलता और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने की नीति का प्रतीक है। हालांकि, भारत को तालिबान के मानवाधिकार हनन, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों पर ध्यान देना जारी रखना होगा। यह कदम भारत के लिए एक गेम चेंजर साबित हो सकता है।

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