स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक बातें: एक समग्र दृष्टिकोण

यदि मनुष्य कुछ आवश्यक बातों को समझ ले, तो वह जीवनभर स्वस्थ रह सकता है। आजकल के अधिकतर रोगों का मुख्य कारण स्नायु-दौर्बल्य और मानसिक तनाव (Tension) है, जिसे प्रार्थना और साधारण जीवनशैली द्वारा दूर किया जा सकता है।

प्रार्थना और मानसिक शांति

प्रार्थना से आत्मविश्वास बढ़ता है, निर्भयता आती है, मानसिक शांति मिलती है और नसों में ढीलापन (Relaxation) उत्पन्न होता है। इससे स्नायविक और मानसिक रोगों से बचाव और छुटकारा मिलता है। रात्रि विश्राम से पहले प्रार्थना का नियम अनिद्रा और डरावने सपनों से बचाता है।

शवासन: मानसिक तनाव का इलाज

शवासन, जो कि एक तरह की ध्यान मुद्रा है, मानसिक तनाव से होने वाले रोगों को दूर करने में अत्यंत लाभकारी है। इसके नियमित अभ्यास से मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

प्राणायाम: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का राज

प्राणायाम का नियमित अभ्यास फेफड़ों को स्वस्थ रखता है और मानसिक व शारीरिक रोगों से रक्षा करता है। प्राणायाम दीर्घायु के लिए महत्वपूर्ण है। इसके साथ शुभ चिन्तन किया जाए तो यह दोनों प्रकार के रोगों से छुटकारा दिलाता है।

  • प्राणायाम की विधि: शुद्ध वायु को नाक से अंदर लेते हुए सोचें कि यह स्वास्थ्यवर्धक वायु रोगग्रस्त स्थान पर पहुँच रही है। आधा मिनट श्वास रोककर, पीड़ित स्थान की ओर ध्यान केंद्रित करें। श्वास छोड़ते समय यह भावना करें कि ‘पीड़ित अंग से रोग के किटाणु बाहर निकल रहे हैं और मैं स्वस्थ हो रहा हूँ। ॐ….ॐ….ॐ….’

सावधानियां

  • श्वास की गति: जितना समय श्वास अंदर लेने में लगे, उससे दोगुना समय श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालने में लगाना चाहिए।
  • कुंभक का अभ्यास: रोगी और दुर्बल व्यक्ति को आभ्यांतर और बाह्य कुंभक दोनों का अभ्यास करना चाहिए। यदि आधा मिनट श्वास नहीं रोक सकते, तो दो से पांच सेकंड श्वास रोकें। पांच-छह बार ऐसा करने से नाड़ीशुद्धि और रोगमुक्ति में अद्वितीय सहायता मिलती है।

स्वाध्याय: आत्मिक शांति का मार्ग

स्वाध्याय यानी सत्साहित्य का अध्ययन मन को शांत और प्रसन्न रखता है, जिससे तन और मन स्वस्थ रहते हैं।

संयम: स्वास्थ्य का मूल

स्वास्थ्य का मूल आधार संयम है। केवल भोजन में सुधार करके भी खोया स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है। बिना संयम के कोई भी दवाई लाभदायक नहीं होती। संयमित जीवन जीने वाले व्यक्ति को दवाई की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। जहाँ संयम है, वहाँ स्वास्थ्य है, और जहाँ स्वास्थ्य है, वहाँ आनन्द और सफलता है।

भोजन में संयम: स्वास्थ्यवर्धक आदतें

स्वाद के वशीभूत होकर बिना भूख के खाने को असंयम कहते हैं। संयमित और आवश्यकतानुसार स्वास्थ्यवर्धक आहार लेना चाहिए।

  • आहार में सुधार: मैदे के स्थान पर चोकरयुक्त आटा, वनस्पति घी के स्थान पर तिल्ली का तेल या शुद्ध घी, सफेद शक्कर के स्थान पर मिश्री या गुड़ और शहद का प्रयोग करें। अचार के स्थान पर ताजी चटनी, अंडे-मांस के स्थान पर दूध, मक्खन, दाल, सूखे मेवे आदि का सेवन करें।

नशीली चीजों से दूर रहें

चाय, कॉफी, शराब, बीड़ी, सिगरेट और तम्बाकू जैसी नशीली वस्तुएं से बचकर आप कई रोगों से खुद को बचा सकते हैं।

खाद्य वस्त्र और बर्तनों का चयन

बाजारू मिठाइयाँ, पेप्सी-कोला, आईसक्रीम, चॉकलेट और सोने-चाँदी के वर्क वाली मिठाइयाँ खाने से बचें। एल्यूमिनियम के बर्तनों के स्थान पर मिट्टी, चीनी, काँच, स्टील या पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें। एल्यूमिनियम के बर्तनों में पकाया या खाया खाना टी.बी., दमा आदि बीमारियों को आमंत्रित कर सकता है।

व्यायाम, सूर्यकिरणें और विश्राम

व्यायाम, सूर्य की किरणों का सेवन, नियमित मालिश और उचित विश्राम भी कई रोगों से रक्षा करते हैं।

निष्कर्ष

उपरोक्त बातों को जीवन में अपनाने से मनुष्य न केवल रोगों से बचा रहता है, बल्कि यदि कभी रोगग्रस्त हो भी जाये, तो शीघ्र स्वास्थ्य प्राप्त कर लेता है। इसलिए इन सरल और प्रभावी उपायों को अपनाकर हम सभी एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जी सकते हैं।

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