वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों को निर्देश दिया है कि बोर्ड में शामिल पूर्णकालिक निदेशकों से जुड़े विजिलेंस मामलों की पूरी और समय पर जानकारी अनिवार्य रूप से साझा की जाए।
वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने कहा है कि नियुक्ति, पदोन्नति और बोर्ड स्तर की तैनाती से जुड़े मामलों में यदि कोई अहम सतर्कता जानकारी छुपाई जाती है, तो यह गंभीर चिंता का विषय है।
विभाग के अनुसार, हाल के समय में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां बोर्ड स्तर के अधिकारियों से जुड़ी नकारात्मक या संवेदनशील जानकारी समय पर उपलब्ध नहीं कराई गई।
निर्देश में कहा गया है कि कई बार निजी शिकायतें, अदालतों की टिप्पणियां या सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों से जुड़ी जानकारियां केवल तब सामने आती हैं, जब विजिलेंस क्लीयरेंस मांगी जाती है।
डीएफएस ने स्पष्ट किया है कि यह तर्क स्वीकार्य नहीं होगा कि विजिलेंस क्लीयरेंस फॉर्म में किसी जानकारी के लिए अलग कॉलम नहीं है, क्योंकि पारदर्शिता सर्वोपरि है।
सरकार ने निर्देश दिया है कि बोर्ड स्तर के किसी भी अधिकारी के खिलाफ यदि गंभीर या नकारात्मक जानकारी उपलब्ध है, तो उसे तुरंत रिपोर्ट किया जाए, भले ही वह मामला उनकी मौजूदा जिम्मेदारी से जुड़ा न हो।
विजिलेंस क्लीयरेंस में अदालत या ट्रिब्यूनल के आदेश, आंतरिक जांच समितियों की रिपोर्ट, गंभीर ऑडिट टिप्पणियां और किसी भी सरकारी एजेंसी से प्राप्त सूचना को शामिल करना अनिवार्य होगा।
मुख्य सतर्कता अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि सतर्कता मंजूरी जारी करते समय कोई भी महत्वपूर्ण तथ्य छुपाया न जाए और जानकारी पूरी तरह अपडेट हो।
इस साल की शुरुआत में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक पंकज द्विवेदी की पदोन्नति का फैसला विजिलेंस क्लीयरेंस न मिलने के कारण वापस लेना पड़ा था।
दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे एक मामले में यह आरोप लगाया गया था कि उनकी नियुक्ति नियमों के विपरीत की गई थी, क्योंकि उस समय सतर्कता मंजूरी उपलब्ध नहीं थी।
सरकार का मानना है कि इन निर्देशों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को और मजबूती मिलेगी।
